रोशनी पोखरियाल (चमोली, उत्तराखंड)
1
आवाज देती है कहीं माँ, आ रही हूँ शैल
से,
माँ दौड़ती कैलाश से, है भीत नंदी बैल से ।
आधार धारा है बनी माँ, छोड़ आई रूप
को ,
कैलाश में भोले शिवाला, छोड़ आई भूप
को ।।
2
बाधा अनेकों राह में हैं, माँ सभी
को लाँघती,
संसार को देने चली वो, है नहीं माँ
माँगती ।
शाखा-विशाखा पेड़ -पौधे, हैं खड़े तेरे
लिए,
देते तुझे वे फूल -पाती, वे खिले आभा
लिए ।।
3
मोती बनी है श्वेत बूँदें, फूल- माला हाथ में ,
आशीष भोले का लिये ,आई शिवानी साथ में ।
माँ ज्ञानधारा को लिए, है बाँटती संसार में,
आती लुटाती जा रही माँ, प्यार गंगा धार
में ।।
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जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और आह्लादक छांदसी रचना, आदरणीय बहन रोशनी जी, हार्दिक बधाई 💐
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय बहन जी 🙏
जवाब देंहटाएं*नीलाम्बरा* में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया
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