रविवार, 17 सितंबर 2023

476-हे! हिमालय

 

  हे !हिमालय/

 डॉअनुपम ‘अनन्य’

 


ऊँचा, विशाल,

धवल तन

धारण कर

पालते नहीं

अहम आवरण

क्षण भर।

तुम्हारे श्वेत शीतल

उत्तुंग शिखर पर

रमते हैं

शिव के अनादि चरण

शाश्वत सानिध्य यह

अमृत जीवन का

प्रत्यक्ष प्रमाण रहा

सृष्टि रक्षार्थ

हलाहल पान

जब किया

आशुतोष ने

सन्तप्त हुई विश्व-धरा

उस गरल के

मारक ताप से

शमन कर ताप को

कर दिया था

शांत-शीतल

नीलकंठ को

हे!हिमवान

तुम्हारे! शीतल हृदय से

निःसृत अविरल अमृत जल-धार

तृप्त करती

चर-अचर को

जाकर मिलती है

विशाल सागर से

यह मिलन

सृष्टि के सृजन का

 बन कारक

  रक्षित कर रहा

  मानवता को।

शनिवार, 9 सितंबर 2023

475-सॉनेट

 

सॉनेट

मूल: गिरिजा बलियारसिंह

अनुवाद: अनिमा दास

(सॉनेटियर,कटक, ओड़िशा )

 






1.महानदी 

 

अक्षरों के अमाप आषाढ़ में, अनंतर शब्दों के सावन में 

तिल से त्रिकाल पर्यंततुम्हें तीर्ण करती हे, तिलोत्तमा

तृष्णा के नक्षत्रों को सहेजता रहूँगा तुम्हारे ताल वन में 

माँग में सजाती रहो, मेरे रक्त की रंगीन  ऊषा, हे प्रियतमा !

 

समय के उस पार से, आओ स्वरवर्ण सा कर शृंगार 

व्यंजन वर्ण की व्यथा हो विस्मृत- इस जन्म के प्रेत को

भाषातीत भाद्रपद में, आशातीत श्विन में लिये उभार 

मेरे मोक्ष की महानदी..आओ, लाँघकर संकट संकेत को 

 

आवर्तन तुम्हारे आलिंगन का रहे सदा के लिए दिगंत पर्यन्त 

बह जाए भय-भ्रांति जितनी प्राचीन प्रणय की, जो ग हैं पसर 

कौन बाँध सकता है तुम्हें, यदि तुम्हारी अनिच्छा  हो अत्यंत

हे, ओतप्रोत ओजपूर्ण ओंकार  ! उतर आओ आज  अधरों पर 

 

महोदधि के हृदय में हो जाओ लीन, हे महानदी तरंग  !

प्रेम के इस प्रलय में विश्वास ही बन वटपत्र रहे अंतरंग।

-0-

2. तिलोत्तमा

 

यदि मोहग्रस्त किया है विश्व को मेरा विदित विग्रह

तुषानल की तीव्रता से त्रिभुवन को मैंने दिया है त्राण 

सम्मोहित किया है सहस्रासुर, सुन्द-उपसुन्द दुःसह

मेरे कटाक्ष से हुआ एक कंपित अन्येक पाया निर्वाण।

 

हुई रूपांतरित क्षुद्र रत्नकणों में : मैं तन्वी तिलोत्तमा

करता विमोहित.. महेंद्र से महादेव : मेरा चारु अवयव 

स्वर्गीया मैं शून्या नारी, न हूँ मैं पत्नी, न हूँ मैं प्रियतमा

तथापि मेरे अव्यक्त अनल में सदा पुरुष बनता है शलभ ।

 

मेरे रूप से तीव्र होती तृष्णा, तृष्णा से बढ़ती है वेदना

चित्त भ्रमित अत्यंत शोभित..तिलांकित तन मेरा तदापि यथावत् 

हृदय में है किसका हाहाकार? आहा!  किसकी है यंत्रणा ?

क्या मेरा निर्जन सिक्त नारीमन है अनंत काल से क्रंदनरत?

 

 

हे विश्वकर्मा! ईश्वर की इच्छा से यदि किया मुझे निर्मित

किस सप्त सागर के स्रोत में, मैं करती स्वप्न समस्त विसर्जित?

-0-

शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

474-कार्य के प्रति समर्पण द्वारा संस्थान की उन्नति में सन्निहित है भवनों की सार्थकता: कुलपति प्रो अन्नपूर्णा नौटियाल

एफडीसी भवन का हुआ शुभारंभ

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय में भारत सरकार के पीएमएमएनएमटीटी योजना के अंतर्गत संचालित फैकेल्टी डेवलपमेंट सेंटर कार्यालय को चौरास परिसर के नवनिर्मित भवन में आज दिनांक 24 अगस्त 2023 को स्थानांतरित  कर दिया गया।  इस भवन का विधिवत् शुभारंभ  विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल के द्वारा किया गया है। इस अवसर पर कुलपति ने कहा कि शैक्षणिक भवनों की सार्थकता उनमें संचालित होने वाले शैक्षणिक गतिविधियों और कार्यक्रमों से ही होती है। मुझे आशा है कि फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर पूर्व की भांति आने वाले दिनों में भी सार्थक शैक्षणिक गतिविधियों को सफलतापूर्वक संचालित करेगा। इस भवन का निर्माण पीएमएमएनएमटीटी के अंतर्गत शिक्षा मंत्रालय के वित्तीय अनुदान  (रु 3.9 करोड़) से किया गया है। 

उल्लेखनीय है कि नवनिर्मित भवन का हवन पूजन के साथ सुव्यवस्थित ढंग से  शुभारंभ कर दिया गया है। इस अवसर पर फैकेल्टी डेवलपमेंट सेंटर की गवर्निंग बॉडी मेंबर्स प्रोफेसर विनोद नौटियाल तथा प्रोफेसर आरके मैखुरी ने भी उपस्थित रहकर शुभकामनाएँ दी हैं। साथ ही इस सेंटर की डायरेक्टर प्रोफेसर इंदु पाण्डेय खंडूरी ने बताया कि शीघ्र ही फैकेल्टी डेवलपमेंट सेंटर मालवीय मिशन सेंटर के रूप में जाना जाएगा। सरकार की आगामी योजना के अनुसार यह सेंटर यूजीसी के माध्यम से अपने कार्यक्रमों को नए नाम के साथ नए रूप में संचालित करेगा। इसके अंतर्गत पूरे देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा ।

पीएमएमएनएमटीटी के अंतर्गत संचालित केंद्रों में से देश भर से 44 सेंटर मात्र यूजीसी द्वारा इस मिशन के लिए चयनित किए गए हैं , जिसमें हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय का फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर भी एक है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति, वित्त अधिकारी, निदेशक आईक्यूएसी, के साथ ही कई संकायाध्यक्ष, शिक्षकवृंद, पूर्व एवं वर्तमान टीम एफडीसी के सदस्य उपस्थित रहे। भवन के निर्माण तथा अन्य प्रबंधन में अभियंता वर्ग के साथ ही कनिष्ठ अभियंता नितिन जोशी, संदीप राणा और चित्रा टीम के सदस्यों का विशेष सहयोग रहा।

प्रोफेसर इंदु पाण्डेय खंडूरी





शनिवार, 19 अगस्त 2023

473-दो रचनाकार

 

1- गीत गाकर ही उठेंगे

                  गोपालदास नीरज

  

विश्व चाहे या न चाहे

लोग समझें या न समझें

आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे। 

 

हर नज़र ग़मगीन है, हर होंठ ने धूनी रमाई

हर गली वीरान जैसे हो कि बेवा की कलाई

ख़ुदकुशी कर मर रही है रोशनी तब आँगनों में 

कर रहा है आदमी जब चाँद-तारों पर चढ़ाई

 

फिर दियों का दम न टूटे

फिर किरन को तम न लूटे

हम जले हैं तो धरा को जगमगा कर ही उठेंगे। 

विश्व चाहे या न चाहे॥ 

 

हम नहीं उनमें हवा के साथ जिनका साज़ बदले

साज़ ही केवल नहीं अंदाज़ औ' आवाज़ बदले

उन फ़क़ीरों-सिरफिरों के हमसफ़र हम, हमउमर हम

जो बदल जाएँ अगर तो तख़्त बदले ताज बदले

 

तुम सभी कुछ काम कर लो

हर तरह बदनाम कर लो

हम कहानी प्यार की पूरी सुनाकर ही उठेंगे। 

विश्व चाहे या न चाहे॥ 

 

नाम जिसका आँक गोरी हो गई मैली सियाही

दे रहा है चाँद जिसके रूप की रोकर गवाही

थाम जिसका हाथ चलना सीखती आँधी धरा पर 

है खड़ा इतिहास जिसके द्वार पर बनकर सिपाही

 

आदमी वह फिर न टूटे

वक़्त फिर उसको न लूटे

ज़िंदगी की हम नई सूरत बनाकर ही उठेंगे। 

विश्व चाहे या न चाहे॥ 

 

हम न अपने आप ही आए दुखों के इस नगर में

था मिला तेरा निमंत्रण ही हमें आधे सफ़र में

किंतु फिर भी लौट जाते हम बिना गाए यहाँ से 

जो सभी को तू बराबर तौलता अपनी नज़र में

 

अब भले कुछ भी कहे तू

ख़ुश कि या नाख़ुश रहे तू

गाँव भर को हम सही हालत बताकर ही उठेंगे। 

विश्व चाहे या न चाहे॥ 

सोमवार, 14 अगस्त 2023

472-आनन्द वहीं है

 डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 


मैं अपरिचित अनगढ़ दिक् पथ पर,

संग सत् चलने दो - आनन्द वहीं है।

 

विकट युवा अँधेरा, प्रकाश हो मंथर

तो उड्डयन टलने दो- आनन्द वहीं है।

 

रुष्ट स्वजन, क्रूर, कुंठित जग जर्जर

ये अश्रु निकलने दो- आनन्द वहीं है।

 

यदि प्रतिशोध खड़े हों विविध रूप धर

दीर्घायु मौन फलने दो- आनन्द वहीं है।

 

अवकाश रहित हो  द्रुत, अंध युग निडर

जो छले हिय, छलने दो- आनन्द वहीं है।

 

पिय विकल आलिंगन, हों पिपासु अधर

तीव्र प्रेमाग्नि जलने दो - आनन्द वहीं है।

 

साहस शिखर सा दृढ़ हो, प्रज्ञा प्रखर

तो प्रेमांकुर पलने दो - आनन्द वहीं है।

 

श्वेत केशराशि, निर्जन वन ज्यों निर्झर

निज यौवन ढलने दो - आनन्द वहीं है।

-0-(रचना-28-05-2023)