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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

208-मल्लयुद्ध

 (गढ़वाली कविता)

 नन्दन राणा 'नवल' (रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड)

 


एक बार टोपलि अर
,

जुत्ता मा तकरार ह्वै।

माभारत छिड़ि बीच,

बाण्याँ बाणू प्रहार ह्वै। 

 

देणु-बयुँ मिलि जुली,

घौ छा कना गैरा-गैरा,

कळ्दरू फ़ौज तैयार,

तब चौतर्फ्या वार ह्वै। 

 

त्वै जन पच्चीस बिकदा,

हमारि एक जोड़ि मा।

हस्ति तेरि कुछ बि नी,

तु त धर्ति पर भार ह्वै। 

 

स्याळ्यूँ का सारा हमै रैंदा,

ब्यौ मा पैसा ऐंठण मा।

सूणि कबि कि टोपलि लुकै,

कैकि दगड़ि तुड़ै पार ह्वै। 

 

टोपलि चुपचाप रैकि,

ये चीरहरण देखणी छै।

दुर्जोध जुत्ता चाल चल्या,

अर टोपली हार ह्वै। 

 

पर वै हि टैम कैकि टोपलि,

उछाळि ऐंच असमान मा।

लड़ै परचंड ह्वैगि तब,

जनता तक मारम-मार ह्वै। 

 

जुत्ता तैं जबाब मिली,

जब टोपल्या बाना लड़ै ह्वै।

टोपलिन बोलि जुत्ता देख,

अब जादा न होश्यार ह्वै। 

 

इज्जतै जब बि बात हुंदि,

तब मैं हि गिरवि रख्यै जंदि।

तेरि जगा खुट्टों मा हि च,

तेरा सारा कैकु करार ह्वै

 

आज बि हाल वनि छन,

टोपली क्वै गिन्ति गाण नी।

जुत्तों कि पौंछ मंदिर तक

अर संसदा तक बि पार ह्वै। 

 

टोपली कीमत सिक्कों न लगा,

वीं तैं मान अर सम्मान द्या।

जुत्ता कै कीमती बि होला,

पर वैकु सिर्वानु कबार ह्वै।

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