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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

423-एक नए सवेरे की तलाश / एका नवीन पहाटेच्या शोधात

  डॉ.कविता भट्ट

 

बहुत परेशान था मन,

शिथिल होकर

लड़खड़ा गया था।

अलगाव चाहता था सपनों से;

आँसू जिन्दगी में घुल चुके थे

जैसे- शराब में बर्फ की डली;

लेकिन शायद उसे हारना नहीं था।

उस शान्त-सी दिखने वाली लड़की ने

फिर से चुपचाप उठाई;

बैशाखी- टूटते हुए सपनों की,

अपेक्षा और आशा को आवाज़ दी

और चल पड़ी पहाड़ी पगडंडी पर

एक नए सवेरे की तलाश में

जबकि नहीं जानती वह

कितना चलना होगा अभी?

चोटी फतह करने को।

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एका नवीन पहाटेच्या शोधात (मराठी अनुवाद)

डॉ. सुरेन्द्र हरिभाऊ बोडखे -महाराष्ट्र

  

खूप अस्वस्थ होते मन,

सुस्त होउन

डळमळून गेले होते.

 वेगळे व्हायचे होते स्वप्नांपासून;

जीवनात अश्रू विरघळले होते

जसे- दारू मध्ये बर्फाचे तुकडे;

पण कदाचित तिला हरायच नव्हतं.

 

त्या शांतशा दिसणाऱ्या मुलीने

निमूटपणे पुन्हा उचलली

कुबडी - तुटलेल्या स्वप्नांची,

 

अपेक्षा आणि आशेला आवाज दिला

आणि चालून गेली डोंगराच्या वाटेवर

एका नवीन पहाटेच्या शोधात

जरी  तिला माहित नव्हतं

अजून किती चालायचे आहे?

शिखर सर करण्यासाठी.

 

बुधवार, 18 जनवरी 2023

417-गौरा का मैका ( जोशीमठ पर विशेष )

 डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 


अहे! किसने हिम मुकुटा फेंका,

रो-सिसक रहा गौरा का मैका।

 

रोया पर्वत, चीखी जब घाटी,

स्वर्ण - रजत हुआ सब माटी।

 

नद शिखर झरने स्तब्ध खड़े हैं,

देखो बुग्याल लहूलुहान पड़े हैं।

 

वो रक्तिम सूरज उगा हिचका सा,

मौन पहाड़ी पर चंदा ठिठका सा।

 

संक्रान्ति हुई है ये क्रूर मकर सी,

हर पगडंडी यमपुरी की डगर सी।

 

पग - पग पर देखो झूली माया,

यों शंकर नगरी - रुदन है छाया।

 

नहीं क्षुधा-पिपासा शांत हुई तो,

अब अलकापुरी आक्रांत हुई वो।

 

ये आँसू खारे अब पी नहीं सकते,

आघात है गहरा- सी नहीं सकते।

 

मान बैठे स्वयं को मायापति तुम,

अरे मनुज कहाते- हे दुर्मति तुम।

 

निज भाग-विधाता कुछ तो बोलो,

ये मौन त्याग तुम मुख को खोलो।

 

निज हेतु षड्यंत्र स्वयं कर डाला,

निन्यांनब्बे फेरी नित-नित माला।

 

अहंकार में जो दिन रात हँसे हो,

निज काले कर्मों में स्वयं फँसे हो।

 

अब भी समय है तो संभलो थोड़ा,

सरपट दौड़ रहा- काल का घोड़ा।

 

सुरसा मुख असीम इच्छाएँ फैली,

कुचल डालो तुम ये मैली - मैली ।

 

नहीं चेते तो पश्चाताप से क्या हो,

त्रासदी - आँसू संताप में क्या हो।

 

विष बुझे बाण से ये प्रश्न बड़े हैं,

उत्तर दो शिखर विकल खड़े हैं।

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सोमवार, 1 अगस्त 2022

377-रक्षा-कवच / कुलदीप जैन

(बहुत ही  दु:खद समाचार है कि श्री कुलदीप जैन का  31 जुलाई  2022  रात शाहदरा दिल्ली  में देहान्त हो गया। वे लघुकथा -जगत् के पुराने एवं चर्चित लेखकों में  से एक थे। उनकी 1989 में बरेली लघुकथा  सम्मेलन में पढ़ी गई लघुकथा -रक्षा-कवच  का मेरा गढ़वाली अनुवाद ,श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत है)

 गढ़वाली अनुवाद: डॉ. कविता भट्ट

 

उ चारि नेवादै कि बदनाम बस्ती क उछियदि आज बि अपडा शिकारै कि खोजम छा। भले ई स्टेट


पुलिस टकटकि हुईं छै

, पर पुलिस वळो तैं चकमा देण वु जणदा छा। भलु हो वीं अण्डरवर्ल्ड पत्रिका कु, जम्मा सिकार पर कनमां झपटे जाउ, यु चित्र कि दगडि समझयूं छौ।

"क्लार्क देखा, सैत क्वी कार च।"

"सैत, सैत से तुमरु क्य मतलब च, तुम इतगा दिन बिटि हम दगडि छां-तुम इतगा बि अंदाज नि लगै सकदां कि" कु वळि मैक कि गाड़ी च। "

गाड़ी फोर्ड कारखानै कि नयि मॉडल लगणी च। विचार क हिसाब से वु चारि सड़कि म पोडी गे छा। जोर सि ब्रेका दगडि 'मिनी लिण्डा' रुकी और धड़ाम सि दरवाजा खुलिन-बिगरैलि नौनी क हत्थ म पिस्तौल छै।

 -देखा तुरन्त भगी जावा, तुमरी बदमासी सैरू अमरीका जाण गे।

उ चारि बेरोजगार ज्वान घबरै गेन। उ चुपचाप उठिक अर एक तरफ जाण लगि गेन। ज्वान नौनी विजयी अंदाज माँ लापरवाह चाल से पलटी अर ठंडू करिक कारौ कु दरवाजु ख्वेली। उ चारि बाजै कि सि फुर्ती सि वीं ज्वान नौनी पर झपटिन अर अँधेरै तरफां लिजाण लगि गे। ज्वान नौनी भले ई उं कि ये कमाण्डो कि तरां तरिका सि हैरान छाई, पर व न तो चिल्लाई च अर न ई चिल्लै-चिल्लैकि हथ-खुटटा मारेन।

' फाड़ द्या ईं का कपडा फैड्रिक" नफरत सि जॉन हिट्टन न बोली। आदेसौ कु पालन ह्वे। ज्वान नौनी नांगी ई रेगिस्तानी धरती पर पणी छै अ र वु झपटण सि पैलि अपडा सिकर तैं परेखण लग्याँ छा।

 -पीटर देख धौं, कन मुल-मुल हैंसणी च-मि तैं त रन्डी लगणी च।

कुलदीप जैन

 
-पर मि तैं त कालेज गर्ल या सेल्स गर्ल लगणि च। नौनी अब भी मुल-मुल हैंसणि छै।

 सैत ईं का सौंजड़ीया न ईं तैं ध्वका दे ह्वाल, इलैई ईंन हल्ला किलै मचौण।

"ऐ छोरी! क्य त्वी तैं हम देखिकी डौर नि च लगण लगीं?"

"अपडु काम करा अर जावा," आराम से नांग्गी पड़ी नौनी न बोलि। वीं की यीं बात पर चारियों न एक-दूसरै कि तरफां देखि अर कुछ असमंजसै कि स्थिति माँ ऐ गेन।

"दरसल, जब तक हमारू सिकार चिलाउू-तड़पू ना, हम मज़ा ई नी आन्दु।"

"चुप हरामी औलाद" , जान चिल्लै अर नौनी पर झुकि गे, वा अब बि मुल-मुल हैंसण लगीं छै। जान परेशान ह्वे ग्याई।

"अच्छा अगर तु इन बतै दे कि त्वे हम देखि डौर किलै नि लगदु, ह्वे सकदु हम त्वे तैं छोड़ द्यौं।"

 –"पर मि छुटण नी चान्दु, अपडु काम जल्दी खत्म करा, मि तैं देर हुणी च।"

ईं बात पर चरियों न एक दूसरै तरफां देखि। अचानक फैड्रिक न नौनी की तरफां खचाक से चाकू ताणी दे-"बोल-जल्दी बोल कि तू हम देखि डन्नि किलै नी छैं।"

नौनी तैं अपडु अस्तित्व मिटदु दिखे। वींकी हैंसी गैब ह्वे गे छै। वा कौंपण लगि गे-उन बि नांगी

कुंगळु सरीर ठण्डी रेत माँ कौं हि छौ।

 -"जु मि नी चान्दु छौ, आप मि तैं वीं बातौ तैं ई मजबूर कन्ना छां। मि 'एड्स' की मरीज छौं। सैकिण्ड स्टेज म चन्नु छौं।"

इतगा सुण छौ कि वु चारि भूतै कि तरां अँधेरा म गैब ह्वे गेन। नौनी न इनां उन्नां पड़याँ फट्याँ कपड़ा उठैन अर कार म जैक बैठि गे। वा पत्रकार नौनी अपडी सफलता पर मन ही मन मुल-मुल हैंसणी छै।

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मूल हिन्दी लघुकथा पढ़ने के लिए निम्नलिखित लिंक को क्लिक कीजिए-

 रक्षा-कवच


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रविवार, 10 जुलाई 2022

370-स्मार्ट पशुशाला

 डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 

सखी! तबेले वाला खुश है


सुना है- तबेले में

पालतुओं की किस्में बढ़ा लीं उसने

वो पहले केवल भैंसे और गाएँ रखता था;

लेकिन अब नई गाय-भैंस कम ही पालता है

अब तबेला केवल तबेला नहीं रहा

स्मार्ट पशुशाला बन गया है

अब गधों को गुलाबजामुन खिलाना

उसे खुशी देता है

और अपने अस्तित्व के स्थायित्व हेतु आवश्यक भी

वैसे गधों की प्रजाति पर

शोध बाकी हैं

और हाँ, सुना है-कुछ घोड़े भी तबेले में ही रख लिये

जो दौड़ते अच्छा हैं।

खच्चर बड़ी संख्या में-

घोड़ों के बीच ही बँधे हैं

और निश्चिंत हैं;

क्योंकि घोड़ों पर खर्च अधिक है

खच्चर थोड़े सस्ते में पाले जा सकते हैं।

और चढ़ाई- उतराई के लिए विश्वसनीय भी हैं।

कुत्ते भी हैं कुछ उसके पास-

जो उसके  सभी आदेशों पर

भौंककर लोगों को डरा सकें

और हाँ भेड़- बकरी- मुर्गे इत्यादि का बड़ा मालिक भी है वो

भेड़ ऊन उतारकर स्वेटर तैयार करवाने के लिए जरूरी है

बकरी मिमियाती अच्छा है

और मुर्गों को पालने का

दर्शन यह है कि

उनकी गर्दन बिना विरोध के मरोड़ी जा सकती है -

कभी भी, कहीं भी

सवाल यह है कि

तबेले वाला गाय - भैंस को पूरी तरह इस पशुशाला से

हटा क्यों नहीं देता;

क्योंकि इनका तो कोई ऐसा उपयोग नहीं

दूध तो आजकल सिंथेटिक भी

मिल जाता है

तो पशुशाला का मालिक

क्या बेवकूफ है?

जो बेवजह ही इन्हें पालता है?

उत्तर है - नहीं

दूध को असली सिद्ध करने के लिए

यह उसे आवश्यक लगता है।

आखिर उसे आदर्श पशुशाला का

मालिक जो कहलाना है।

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बुधवार, 1 जून 2022

360-डॉ कविता भट्ट के व्याख्यान का विवरण

 

डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री

जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार की ऑफिशियल वेब पर डॉ. कविता भट्ट के व्याख्यान का डिटेल अपलोड। आप सबको अवलोकन हेतु  निम्न लिखित लिंक-

जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार