बुधवार, 1 जनवरी 2020

142-बहुत परेशान था मन

डॉ .कविता भट्ट 'शैलपुत्री 
                                                               
 बहुत परेशान था मन
शिथिल होकर
लड़खड़ा गया था।
अलगाव चाहता था सपनों से;
आँसू जिन्दगी में घुल चुके थे
जैसे- शराब में बर्फ की डली;
लेकिन शायद उसे हारना नहीं था।
उस शान्त-सी दिखने वाली लड़की ने
फिर से चुपचाप उठाई;
बैशाखी- टूटते हुए सपनों की,
अपेक्षा और आशा को आवाज़ दी
और चल पड़ी पहाड़ी पगडंडी पर
एक नए सवेरे की तलाश में
जबकि नहीं जानती वह
कितना चलना होगा अभी?
चोटी फतह करने को।