डॉ.कविता भट्ट
(हे.न.ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखंड)
चर्चाएँ करती रहती हैं ए- बड़ी-बड़ी विभूतियाँ
बारिश-धूप में पलता है- बचपन पहाड़ का
पढ़ने को कोसों चलता है- बचपन पहाड़ का ।
यहाँ घास-पानी-गोबर भी है- बोझे में शामिल
पहाड़ी बर्फ़-सा गलता है- बचपन पहाड़ का
होटलों में बर्तन मलता है- बचपन पहाड़ का ।
इनको जरा निहारो तुम ओ बाबूजी ! करीब से
आँखें मिलाओ ,तो जरा किसी बच्चे गरीब से
गिरता है और सँभलता है-
बचपन पहाड़ का
बस ठोकरों में ही पलता है- बचपन पहाड़ का।
सरकारें जपती रहती हैं- नित माला विकास की
कोई तो सुध ले पहाड़ी- से इस ढलती आस की
पहाड़ी सूरज- सा उग-ढलता है बचपन पहाड़ का
पगडंडियों में गुम मिलता है- बचपन पहाड़ का ।
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