डॉ.कविता भट्ट,
1-मुक्तक
गहन हुआ अँधियार
प्रियतम मन के द्वार ।
धरो प्रेम का दीप
कर दो कुछ उपकार ।
2
नीरव मन के द्वार
अँसुवन की है धार।
छू प्रेम की वीणा
झंकृत कर दो तार ॥
3-दोहा
छोटी- छोटी बात पर,
मत करना तुम रार ।
मेरे जीवन का सभी
तुम पर ही अब भार।
4-दोहा
माटी-सी इस देह के
तुम हो प्राणाधार ।
तुम्हीं आत्मा हो प्रिये !
मैं तो बस संचार ॥
-0-
[चित्र -गूग्ल से साभार ]
सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक।दिल की गहराइयों से निकलकर दिल को भिगो देने वाली।
जवाब देंहटाएंचारों दोहे अनुपम
हार्दिक आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाएँ , हार्दिक बधाई कविता जी !
जवाब देंहटाएंकविता भट्ट को मैं सदा पढ़ती रहती हूँ । बहुत सुन्दर काव्य एवं भाव सौन्दर्य के मुक्तक एक सरस दो हों के लिये बधाई ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर एवं भावपूर्ण दोहे कविता जी! हार्दिक बधाई आपको!!!
जवाब देंहटाएं~सादर
अनिता ललित
सुंदर भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई कविता जी
जवाब देंहटाएंआदरणीया, ज्योत्स्ना जी , अनिता जी , विभा जी , सुनीता जी आप सभी का हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर काव्य धारा की कुछ लहरे |
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
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