डॉ० कविता भट्ट
धूप में तपते हुए बर्फ-सा पिघलना है
चिरनिद्रा से पूर्व मुझे मीलों चलना है।
नयनों में रह जाऊँ; सपना नहीं
मैं बीज धरा के गर्भ में संघर्षण
ताप-दाब सह होगा मेरा अंकुरण ।
पहाड़ी-सीना चीर; वट-जैसा पलना है
चिरनिद्रा से पूर्व मुझे मीलों चलना है।
कंटक या पुष्प करें आलिंगन
नित जीवन करता अभिनन्दन
दूब जड़ों- सी हठ है; प्रति पल
कितना भी कर डालो उन्मूलन
पथरीली माटी को चन्दन ज्यों मलना है
चिरनिद्रा से पूर्व मुझे मीलों चलना है।
जीवन राग सुनाती; हरीतिमा में ढली
नन्ही कोंपले दूब की संघर्षो में पली
शुभ होती,
यही हर पूजन में चढ़ती
जीवनदायी नैनों को, निशिदिन बढ़ती
सत्पथ पर ठोकर खा,प्रतिपल सँभलना है
चिरनिद्रा से पूर्व मुझे मीलों चलना है ।
-0-( डॉ० कविता भट्ट,हे० न० ब० गढ़वाल
विश्वविद्यालय ,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड)
[ सभी चित्र गूगल से साभार]
वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंआभार दीदी जी
हटाएंVery nice poem
हटाएंहार्दिक आभार भारत जी
हटाएंसुन्दर रचना
हटाएंबहुत ही उत्तम अभिव्यकि चिर निद्रा से दूर मिलो चलना है ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति कविता जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति कविता जी
जवाब देंहटाएंवाहहहह ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! बेहद सुन्दर...| बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआप सभी आत्मीय जनों का हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंप्रेरक कविता। निराश के बादलों में किरण जैसी
जवाब देंहटाएंBahut bhavpurn badhai aapko
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, आप सभी का।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर स्तरीय रचना बधाई
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