डॉ.कविता भट्ट
(हे.न.ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखंड)
चर्चाएँ करती रहती हैं ए- बड़ी-बड़ी विभूतियाँ
बारिश-धूप में पलता है- बचपन पहाड़ का
पढ़ने को कोसों चलता है- बचपन पहाड़ का ।
यहाँ घास-पानी-गोबर भी है- बोझे में शामिल
पहाड़ी बर्फ़-सा गलता है- बचपन पहाड़ का
होटलों में बर्तन मलता है- बचपन पहाड़ का ।
इनको जरा निहारो तुम ओ बाबूजी ! करीब से
आँखें मिलाओ ,तो जरा किसी बच्चे गरीब से
गिरता है और सँभलता है-
बचपन पहाड़ का
बस ठोकरों में ही पलता है- बचपन पहाड़ का।
सरकारें जपती रहती हैं- नित माला विकास की
कोई तो सुध ले पहाड़ी- से इस ढलती आस की
पहाड़ी सूरज- सा उग-ढलता है बचपन पहाड़ का
पगडंडियों में गुम मिलता है- बचपन पहाड़ का ।
-0-
जीवन का संघर्ष और साथ में प्रशासनिक उपेक्षा का यथार्थ चित्रण । ये पन्क्तियाँ उल्लेखनीय हैं-'पहाड़ी बर्फ़-सा गलता है- बचपन पहाड़ का
जवाब देंहटाएंहोटलों में बर्तन मलता है- बचपन पहाड़ का।'
पहाड़ी बचपन के संघर्ष को कविता में ढाल कर जन-जन तक पहुँचाने में आप सफल रही हैं.. हार्दिक बधाई ।🙏🙏👏👏👏👏👏🌷🌷🌷
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय श्री काम्बोज जी एवं प्रिय सखी सुनीता जी
जवाब देंहटाएंयथार्थ चिंतन और चित्रण ! बधाई !!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया, डॉ ज्योत्स्ना दी
जवाब देंहटाएंयह पहाड़ के बचपन के बारे में होते हुए भी व्यापकता समेटे हुए है. बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार भास्कर जी
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर , आप हर पहलू का सुन्दर चित्रण करती हैं ,
जवाब देंहटाएंआपके ज़हन में बहुत कुछ चल रहा है , आपको एक सही दिशा मिलना बाक़ी है । किसी को अपना गुरु बनाएँ ।
पहाड़ के यथार्थ को कहें या यथार्थ के पहाड़ को चित्रित करती कविता बहुत से सवाल खड़े करती है।परन्तु सवाल तो यही है कि डवाब कौन देगा,जवाबदेही किसकी बनती है? आपका चिंतन यथार्थवादी है।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ कि बेहतर रचती रहें।
बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंपहाड़ के यथार्थ को कहें या यथार्थ के पहाड़ को चित्रित करती कविता बहुत से सवाल खड़े करती है।परन्तु सवाल तो यही है कि डवाब कौन देगा,जवाबदेही किसकी बनती है? आपका चिंतन यथार्थवादी है।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ कि बेहतर रचती रहें।