शनिवार, 31 मार्च 2018

बचपन पहाड़ का



डॉ.कविता भट्ट 
                         (हे... गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखंड)


.सी.में बैठ बनती हैं अधिकार-नीतियाँ
चर्चाएँ करती रहती हैं ए- बड़ी-बड़ी विभूतियाँ
बारिश-धूप में पलता है- बचपन पहाड़ का
पढ़ने को कोसों चलता है- बचपन पहाड़ का ।


शहरों में बोझे बस्तों के ही लगते हैं मुश्किल
यहाँ घास-पानी-गोबर भी है- बोझे में शामिल
पहाड़ी बर्फ़-सा गलता है- बचपन पहाड़ का
होटलों में बर्तन मलता है- बचपन पहाड़ का ।

इनको जरा निहारो तुम ओ बाबूजी ! करीब से
आँखें मिलाओ ,तो जरा किसी बच्चे गरीब से
गिरता है और  सँभलता है- बचपन पहाड़ का
बस ठोकरों में ही पलता है- बचपन पहाड़ का।
 
सरकारें जपती रहती हैं- नित माला विकास की
कोई तो सुध ले पहाड़ी- से इस ढलती आस की
पहाड़ी सूरज- सा उग-ढलता है बचपन पहाड़ का
पगडंडियों में गुम मिलता है- बचपन पहाड़ का ।
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11 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन का संघर्ष और साथ में प्रशासनिक उपेक्षा का यथार्थ चित्रण । ये पन्क्तियाँ उल्लेखनीय हैं-'पहाड़ी बर्फ़-सा गलता है- बचपन पहाड़ का
    होटलों में बर्तन मलता है- बचपन पहाड़ का।'

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  2. पहाड़ी बचपन के संघर्ष को कविता में ढाल कर जन-जन तक पहुँचाने में आप सफल रही हैं.. हार्दिक बधाई ।🙏🙏👏👏👏👏👏🌷🌷🌷

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  3. हार्दिक आभार आदरणीय श्री काम्बोज जी एवं प्रिय सखी सुनीता जी

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  4. यथार्थ चिंतन और चित्रण ! बधाई !!

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  5. हार्दिक आभार आदरणीया, डॉ ज्योत्स्ना दी

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  6. यह पहाड़ के बचपन के बारे में होते हुए भी व्यापकता समेटे हुए है. बहुत बहुत बधाई

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  7. अति सुन्दर , आप हर पहलू का सुन्दर चित्रण करती हैं ,
    आपके ज़हन में बहुत कुछ चल रहा है , आपको एक सही दिशा मिलना बाक़ी है । किसी को अपना गुरु बनाएँ ।

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  8. पहाड़ के यथार्थ को कहें या यथार्थ के पहाड़ को चित्रित करती कविता बहुत से सवाल खड़े करती है।परन्तु सवाल तो यही है कि डवाब कौन देगा,जवाबदेही किसकी बनती है? आपका चिंतन यथार्थवादी है।

    शुभकामनाएँ कि बेहतर रचती रहें।

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  9. वीरेन्द्र पंवार13 अप्रैल 2018 को 8:29 am बजे

    बेहतरीन रचना ।

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  10. वीरेन्द्र पंवार13 अप्रैल 2018 को 8:31 am बजे

    पहाड़ के यथार्थ को कहें या यथार्थ के पहाड़ को चित्रित करती कविता बहुत से सवाल खड़े करती है।परन्तु सवाल तो यही है कि डवाब कौन देगा,जवाबदेही किसकी बनती है? आपका चिंतन यथार्थवादी है।

    शुभकामनाएँ कि बेहतर रचती रहें।

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