सूरज फिर आज मुस्काता उगा
उपहास करता तुच्छ मानव का!
जो कल साँझ को कह रहा था-
‘डूबते सूरज को नहीं नमन होता!’
भूल जाते वे, सूरज कर्मयोगी-सा
कभी डूबता नहीं, न ही है उगता
बिना भेदभाव केवल प्रकाश बाँटता
गनीमत है -वश नहीं मानव का ,
अन्यथा, इसे भी तुच्छ बुद्धि ! बाँटता,
काटता-छाँटता, डुबाता-उगाता...
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सूरज के माध्यम से जीवन को प्रेरणा देने वाली रचना। हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar
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