देवत्व की सीढ़ियों-से सुन्दर खेत
ध्वनित नित विश्वहित प्रार्थना मुखर
पंक्तिबद्ध खड़े अनुशासन में तरु-शिखर
ध्वनित नित विश्वहित प्रार्थना मुखर
पंक्तिबद्ध खड़े अनुशासन में तरु-शिखर
घाटी में गूँजते शैल-बालाओं के मंगलगान
वह स्वामिनी;
अनुचरी कौन कहे अनजान
पहाड़ी-सूरज से पहले ही,
उसकी उनींदी भोर
रात्रि उसे विश्राम न देती,
बस देती झकझोर
पहाड़ी-सूरज से पहले ही,
उसकी उनींदी भोर
रात्रि उसे विश्राम न देती,
बस देती झकझोर
हाड़ कँपाती शीत देती, गर्म कहानी झुलसाती
चारा-पत्ती,
पानी ढोने में मधुमास बिताती
विकट संघर्ष; किन्तु अधरों पर मुस्कान
दृढ़, सबल, श्रेष्ठ वह, है तपस्विनी महान
विकट संघर्ष; किन्तु अधरों पर मुस्कान
दृढ़, सबल, श्रेष्ठ वह, है तपस्विनी महान
और वहीं पर कहीं रम गया मेरा वैरागी
मन
वहीं बसी हैं चेतन,
उपचेतन और अवचेतन
सब के सब करते वंदन जड़ चेतन अविराम
देवदूत नतमस्तक कर्मयोगिनी तुम्हें प्रणाम !
सब के सब करते वंदन जड़ चेतन अविराम
देवदूत नतमस्तक कर्मयोगिनी तुम्हें प्रणाम !
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शैलबाला का मनमोहक सुन्दर चित्रण करती कविता , सरस भाव-सम्पदा, सुन्दर-शब्द चयन।
जवाब देंहटाएंख़ूब सरस।
जवाब देंहटाएंसुंदर,दृश्य उकेरती रचना,बधाई!
जवाब देंहटाएंआप सभी को हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन । नमन आपकी लेखनी को ।
जवाब देंहटाएंकिसी ने लिखा था,"वो तोड़ती पत्थर, देखा मैने उसे इलाहाबाद के पथ पर,श्याम तन भर बंधा यौवन, नत नयन प्रिय कर्म रत मन...' इसी भाव तो ताज़ा करती है आपकी यह कविता।शैल बाला क्यों भारत की नारी तन मन की सुंदरता, विदुषी और कर्मठ रही है।आपकी शैल बाला का साम्य देश की अन्य कर्मशील स्त्रियों से है, वो समय अब दूर नहीं जब मातृ शक्ति को उनके श्रम का उचित प्रतिफल मिलेगा।अद्वितीय लेखन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वर्णन...बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंसरस तथा बहुत प्यारी रचना कविता जी !
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