डॉ.कविता भट्ट
विषवृक्ष
उगता है-
विष
में
विष
में पल्लवित होता
विष ही
हवा में घोलता
उसकी
छाया में विवश यात्री
हो जाता
है नीलकंठ
कभी
कुछ नहीं बोलता
यह
नीलकंठ रामेश्वर
माँगता
है राम से फिर भी
विषवृक्ष
के लिए सद्बुद्धि
लेकिन
स्वभाव से विवश
उस
वृक्ष पर
डोलते
रहे विषधर
विषधरों
की माला धारण कर
रामेश्वर
पुनः हो जाते-
सत्यं-शिवं-सुंदरम्
-0-
(12-04-2018)
बहुत गहरी बात कही आपने। जीवन को विषाक्त करने वाले बहुत से नकारात्मक तत्त्व हैं। फिर भी जिसके मन में कल्याण कामना है,वह दूसरों के लिए कुछ हितकर ही सोचेगा।
जवाब देंहटाएंछोटी सी कविता में आपने बड़ा सन्देश दे दिया।
Waah
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन, बधाई कविता जी!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आप सभी का।
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