ज्योति नामदेव
[अध्यापिका, कर्णप्रयाग, उत्तराखण्ड]
वाह ! मेरा उत्तराखंड अटठारह वर्ष का हो गया
पहाड़ का कण-कण दर्द से तार -तार
हो गया l
वाह ! मेरा उत्तराखंड अटठारह वर्ष का हो गया l
आधुनिकता के दौर में,
फैशन की चकाचौंध में,
रोजगार की दौड़ में,
झटपट-सरपट भाग रहे हैं, अजब सा हाल है l
वाह !मेरा उत्तराखंड अटठारह वर्ष का हो गया l
नारी की भोली -प्यारी सूरत
जिसे देखकर पहाड़ भी इठलाता था
अब जींस -टॉप में देख उन्हें
पहाड़ी परिधान भी शरमा गया
वाह !मेरा उत्तराखंड अटठारह वर्ष का हो गया l
पहाड़ों पर मधुर गीत,
ढ़ोल, दमाउ, बिनाई, तुहरी
की मीठी तान,
क्या बताऊँ अब, सब
डीजे के शोर तले ढह गया l
वाह !मेरा उत्तराखंड अटठारह वर्ष का हो गया l
पेड़ भी जड़ों से निकलने को आतुर हैं,
बच्चे भी इसे वीरान करने को आतुर हैं l
विकास की धुन में इससे सब पलायन हो गया l
वाह !मेरा उत्तराखंड अटठारह वर्ष का हो गया
नए -नए स्वादिष्ट खाने के इच्छुक,
कुछ नया पाने के इच्छुक,
अपने आप को मॉडर्न
बनाने के इच्छुक,
चाउमीन, डोसा, मोमोज के आगे
मंडूवे की रोटी का स्वाद फीका हो गया l
वाह !मेरा उत्तराखंड अटठारह वर्ष का हो गया l
काश इसका दर्द भी समझें कोई,
लेखनी से आगे बड़े भी कोई,
कथनी और करनी का मेल करें भी कोई,
इसके जख्म का मरहम बने भी कोई,
अब तो इसका साँस लेना भी दूभर
हो गया l
वाह !मेरा उत्तराखंड अटठारह वर्ष का हो गया l
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