डॉ0 सत्य
प्रकाश मिश्र
हे कालजयी!
महाकाल भी रोया था
मुँह छुपाकर तुम्हारी तंग गलियों में।
जहाँ अमरत्व पा लिया बलिदानियों ने
काल को धता बताकर।
पर, कोई नहीं
समझ सका तुम्हारा दर्द
तुम्हारी अन्तहीन पीड़ा।
कौन होगा तुम्हारे जैसा अभागा
जिसका तन
जीवन भर सागर की थपेड़ों से
घायल होता रहा
और अन्तर्मन मां के सपूतों पर हुए
जुल्मों से जख्मी।
गुलामी की मर्मान्तक पीड़ा
तुम्हारी तरह किसने सही होगी।
निश्चेष्ट और निष्प्राण हो चुकी
तुम्हारी देह को
उन्हीं अमर शहीदों के
बलिदान की संजीवनी ने
एक बार फिर जीवन्त कर दिया।
सागर की वही नमकीन लहरें
मरहम बन कर रात-दिन
तुम्हारे जख्मों को भरने में लगी हैं।
हे अपराजेय महारथी!
आजादी की लड़ाई
भले ही पूरे देश में लड़ी गई
किन्तु परिणाम के असली हकदार
तुम्हीं हो।
इसीलिए माँ का आँचल भले ही
कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला है
पर
उसकी आत्मा विह्वल होकर
अभी भी भटक रही है
तुम्हारी काल कोठियों में।
हे अण्डमान!
तुम मानचित्र में
नुक्ते से बड़े नहीं दिखते
पर तुम्हारा
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भूगोल
दुनिया के मानचित्र से भी बड़ा है।
इसके पृष्ठों को अभी तलाश है
सुनहरी रोशनाई वाली धारदार कलम की।
अनगिनत सावरकर
आज भी करा रहे हैं
तुम्हारी स्याह काल कोठियों में।
जिनकी कराहटों को अब तक
मौत भी नहीं कर पाई मौन।
वे आज भी दर्ज कराना चाहते हैं
अपना कलम बन्द बयान
जो अब तक उनकी छाती पर
बोझ बन कर मांग रहा है
अपना हिसाब
दुनिया की अदालत में।
हे आजादी के महानायक!
तुम कदकाठी में भले ही अदने से हो।
पर, तुम्हारा
धैर्य-पराक्रम और सहनशक्ति
हिमालय से कम नहीं
जो अडिग और अचल रही
गुलामी की प्रताड़ना के
भयावह भूकम्प में भी।
वज्र से भी कठोर है तुम्हारा हृदय
जो विदीर्ण नहीं हुआ
अपने सपूतों की ह्रदय विदारक वेदना से
जिनकी सहनशक्ति पराकाष्ठा से भी परे थी
धैर्य और पराक्रम अपने अर्थ से भी बड़ा।
हे महात्मन्!
तुम्हें आज भी गर्व है अपनी सुंदरता पर
जिसे कलुषित कर दिया था
कलमुहे पापी फिरंगियों ने
अपनी काली करतूतों से
काला पानी बनाकर।
तुम्हारी इच्छा थी
कोई आए
खूबसूरती निहारे
रूप निखारे।
महनीय
सभ्यता और संस्कृति के
रंग से सराबोर हो जाए
तुम्हारा कण-कण।
'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का शंखनाद
जनगण की अंतरात्मा को झकझोर दे
और फिर से रोशन कर दे
तुम्हारी काली कोठरियों को।
पीड़ा और संत्रास की
कोई लकीर न हो तुम्हारे माथे पर।
गाँधी जी की सत्य-अहिंसा
बुद्ध और महावीर की करुणा
मिलकर कर दें
तुम्हारी अंतरात्मा को
पावन और शीतल।
हे पुण्यात्मन् !
आज तुम्हारे पुण्य फलित हो गए।
तुम्हारी धरती फिर बन गई ललाम।
हे महात्मन्! तुम्हें प्रणाम।
-0- रामनगर (नैनीताल), उत्तराखण्ड