ईशा नारंग (पंजाब, भारत)
तुम इतनी भी मुझे अपनी ना समझ लेना
कि
बना बैठो मुझे अपने लिए अपने जैसी ही
तुम्हें, हर बार,
आ कर मुझे रिझाना होगा
मेरे
ख्यालों की दुनिया में उतर जाना होगा
समझनी
होंगी, पूरा करनी होंगी मेरी ख्वाहिशें
यूँ ही नहीं मैं मिल जाऊँगी तुम्हें गाहे - ब - गाहे
माना
कि हम दोनों एक हैं,
दो नहीं
पर
तुमसे बाहर मेरी भी है एक हस्ती
तुम्हें, हर बार,
मेरे अस्तित्व को स्वीकार करना होगा
ये
मेरा अहम नहीं,
आत्म सम्मान है, समझना होगा
चलना
होगा, हाथ में हाथ, कदम से कदम मिलाकर
यूँ ही नहीं मैं मिल जाऊँगी तुम्हें गाहे - ब - गाहे
आगे
बढ़ना होगा,
अपने दायरे से बाहर निकलना होगा
जितना
प्यार जताते हो कहकर,
आचरण से भी करना होगा ।
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क्या बात है प्रिय कविता जी।स्वाभिमान का उद्घोष करती रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🌺🌺🌷🌷♥️♥️