रश्मि विभा त्रिपाठी
1-संवेग
ओ विलियम मैक्डूगल!
तुमने न केवल
यह बताया
क्या है आखिर
यह मूल प्रवृत्ति?
बल्कि
इसके चौदह प्रकार हैं
व इससे ही हुई
संवेग की उत्पत्ति
यानी
भीतर के भावों की
बाहर की ओर बढ़ती गति
तुम्हें अशेष बधाई!
संवेगों की संख्या निश्चित करने को
बधाई!
मैंने पढ़ा
मगर अब ध्यान दिया
कि इसी कड़ी में
छूट गई है
एक और प्रक्रिया
जो मैंने अनुभव किया
तुम आज होते यहाँ
तो बताती
संवेग
सबके लिए समान नहीं
एक व्यक्ति
एक समय में
दुख से मर रहा है
उसी समय
उसे देखने वाला
आनंद से भर रहा है
हाँ.. हाँ...
ये मेरे साथ हुआ
हाल ही में
तथाकथित अपनों ने
जब मुझसे पूछा
क्यों उदास हो?
मैंने रोते हुए
कह तो दी सारी कहानी
पर उसी क्षण
यह बात भी जानी
किसी की दिलचस्पी नहीं थी
मेरे कराहते अतीत में
मैंने साफ- साफ सुन लिया था
अपने आस-पास गूँजते हँसी के संगीत में।
2- तुम इन्सान नहीं
तुम इन्सान नहीं
हो कलियुग के देवता
जिसने
अपने द्वार पर आए
सुख को
आसानी से दे दिया
मेरे घर का पता
तुम्हारी कही बातों में
कभी नहीं मिला संकेत
किसी छलावे का
जिसकी अनुभूति से
मैं कई बार
हो चुकी हूँ अचेत
मेरे दुख से दुखी हुए
तुम्हारी आँखों से चुए
टप- टप
वैसे ही आँसू
सुदामा से गले लिपटके
जैसे कृष्ण रो पड़े थे!
मुझे जब- जब छुआ
तुमने देने को दुआ
तुम्हारे स्पर्श में
पावनता
और दूसरी नहीं गंध
प्रेम में ऐसी शक्ति
इतना धीरज!!
आधुनिक प्रेमियों को
ले लेनी चाहिए
तुम्हारी चरण- रज
दुनिया को
यह देखकरके
सचमुच होगा अचरज
कि
बगैर कुछ चाहे
चलते रहे
शहर, बस्ती,
जंगल के
अनजाने रास्तों पे
तुम मेरे साथ- साथ
गाहे- बगाहे
गिरने को जब भी हुई
तुमने तब-तब
दौड़कर पकड़ा मेरा हाथ।
-0-
3-दुनिया
तेरी दुनिया अलग
मेरी दुनिया पृथक्
मगर हमारे रीति- रिवाज
मिलते हैं बहुत हद तक
औरों के सुख-चैन की
तू हर दिन करता कामना
मेरे लिए सबसे बड़ी
तेरी यह पूजा, साधना
आस-पास की करुणा से
मेरा चेहरा भी आँसू में
सना
रोते हुए इन्सान को
जब तूने गले लगाया
तेरी इसी उदारता पर
तब- तब मेरा मन आया
तेरी- मेरी संवेदना का
एक ही सीधा- सरल पथ
अपने में जी रही इस दुनिया
से
हम धीरे-धीरे इसीलिए हो
चले विरत।
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4- प्रेम के मायने
देख ना!!!
मेरे हास का गुंजन
पूरब से पश्चिम
बनकरके कुंदन
चमचमाया
रंग लाया
तेरा वो
मेरे दुख की धूल
आँधी के आने पर
अपने हाथों में
समेटना!!
तेरे लिए
प्रेम के मायने-
चुन-चुन के
सब काँटे
सुख की कली
मेरे लिए सहेजना
सुरक्षित
मुझ तक भेजना
कि विदा ले
वेदना
मेरे प्राण!!
प्रेमियों के लिए
तू बन गया है प्रेरणा।
-0-
सभी कविताएँ बहुत गहरी।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१०-०८ -२०२२ ) को 'हल्की-सी सीलन'( चर्चा अंक-४५१७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
नीलाम्बरा में मेरी रचनाओं को स्थान देने हेतु आदरणीया दीदी की आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंअपनी टिप्पणी से मुझे प्रोत्साहन देने के लिए आदरणीय गुरुवर का हार्दिक आभार।
सादर
आदरणीया अनीता जी का हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंसादर
गहन मिल लिए अभिनव सृजन।
जवाब देंहटाएंसभी कविताएं हृदय स्पर्शी।
सुंदर।
गहन भाव पढ़े कृपया।
जवाब देंहटाएंसभी कविताएं हृदय स्पर्शी।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविताएं
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