राजीव रत्न पाराशर( कैलिफोर्निया )
उछला मन बल्लियों,
ऐसी कुछ बात हुई।
बहुत दिनों बाद आज
खुद से मुलाक़ात हुई।
मिलने के लिये मैंने
खुद ही को बुलाया।
हाल चाल पूछे ,
फिर हाथ भी मिलाया।
मिल बैठे दो जन,
मस्ती के आलम में।
एक तो मैं …
और दूसरा भी मैं।
गम्भीर से मुद्दों पर
विचार- विमर्श
हुआ।
हम दोनो भिन्न नहीं
यही निष्कर्ष हुआ।
शिकवे भी साझा किए
कुछ ग़ुस्सा भी फूटा।
बहुरूपी से मन का
कोई पहलू ना छूटा।
जाना ये आज कि
इंसान मैं अच्छा हूँ।
ज़ुबान से शायर हूँ,
दिल का सच्चा हूँ।
मेरे बिन ये दुनिया
वाक़ई अधूरी है।
अपने आप से मिलना
इसीलिए ज़रूरी
है।
ज़रूरी इसलिए नहीं कि
मन में कुछ अहम् है।
बस इसलिए कि यहाँ
हम जैसे सिर्फ़ हम हैं।
यूँ तो हम दुनिया की
ख़ूब ख़ाक छानते हैं।
पर अपने बारे में हम
कितना कम जानते हैं।
खुद की अनदेखी की
कितना अजीब हूँ।
यह मैं ही हूँ जो मेरे
सबसे क़रीब हूँ।
मिलना सब लोगों से
मेरा भटकाव था।
मिलना ये खुद से ही
अंतिम पड़ाव था।
अब मिलने मिलाने का
और झमेला न रहा।
मैं खुद से मिला, फिर
कभी अकेला न रहा।
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Very nice lines. Heart touching.
जवाब देंहटाएंखुद से मिलने में ही जीवन की सार्थकता है।सुन्दर आत्माभिव्यक्ति 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर आत्मावलोकन
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