डॉ.कविता भट्ट
मधुर ध्वनि में इसको गाना।
अक्षर-अक्षर पावन मन्त्रों-सा
आँख मूँद हमें है जपते जाना।
गंगाजल-सा शीतल मन है
और दीप्त शिखा-सा मेरा तन है।
पत्र-पुष्प काँटों में से चुनती हूँ
जीवन विरह का आँगन-उपवन है।
भगवद्गीता के अमृत-रस-सा
घूँट-घूँटकर तुम पीते जाना।
वचन-वचन पावन श्लोकों-सा
तर्कों में इसको न उलझाना।
तुमने कानों में रस घोला
होंठों पर मुस्कान सजाई।
रोम-रोम प्रियतम बोला
कामनाओं ने ली अँगडाई।
उपनिषदों के तत्त्वमसि-सा
साँस-साँस तुम्हे रटते जाना।
तुम चाहो इसको जो समझो
मैंने तुम्हे परब्रह्म-सा माना।
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प्रेम की पावनता की मधुरिम अनुभूति।
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