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शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

376-नदी माँ (हरिगीतिका)

रोशनी पोखरियाल (चमोली, उत्तराखंड)

     1  

आवाज देती है कहीं माँ, आ रही हूँ शैल से,


माँ दौड़ती कैलाश से
, है भीत नंदी बैल से

आधार धारा है बनी माँ, छोड़ आई रूप को ,

कैलाश में भोले शिवाला, छोड़ आई भूप को ।।

2

बाधा अनेकों राह में हैं, माँ सभी को लाँघती,

संसार को देने चली वो, है नहीं माँ माँगती ।

शाखा-विशाखा पेड़ -पौधे, हैं खड़े तेरे लिए,

देते तुझे वे फूल -पाती, वे खिले आभा लिए ।।

3

मोती बनी है श्वेत बूँदें, फूल- माला हाथ में ,

आशीष भोले का लिये , शिवानी साथ में ।

माँ ज्ञानधारा को लिए,  है बाँटती संसार में,

आती लुटाती जा रही माँ, प्यार गंगा धार में ।।


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4 टिप्‍पणियां:

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  2. बहुत सुंदर और आह्लादक छांदसी रचना, आदरणीय बहन रोशनी जी, हार्दिक बधाई 💐

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  3. हार्दिक आभार आदरणीय बहन जी 🙏

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  4. *नीलाम्बरा* में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया

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