डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
सखी! तबेले वाला खुश
है
सुना है- तबेले में
पालतुओं की किस्में
बढ़ा लीं
उसने
वो पहले केवल भैंसे और
गाएँ रखता
था;
लेकिन अब नई गाय-भैंस कम ही पालता है
अब तबेला केवल तबेला
नहीं रहा
स्मार्ट पशुशाला बन
गया है
अब गधों को गुलाबजामुन
खिलाना
उसे खुशी देता है
और अपने अस्तित्व के
स्थायित्व हेतु आवश्यक भी
वैसे गधों की प्रजाति
पर
शोध बाकी हैं
और हाँ, सुना है-कुछ घोड़े भी तबेले में ही रख लिये
जो दौड़ते अच्छा हैं।
खच्चर बड़ी संख्या
में-
घोड़ों के बीच ही बँधे हैं
और निश्चिंत हैं;
क्योंकि घोड़ों पर
खर्च अधिक है
खच्चर थोड़े सस्ते में
पाले जा सकते हैं।
और चढ़ाई- उतराई के लिए विश्वसनीय भी
हैं।
कुत्ते भी हैं कुछ
उसके पास-
जो उसके सभी आदेशों पर
भौंककर लोगों को डरा
सकें
और हाँ भेड़- बकरी-
मुर्गे इत्यादि का बड़ा मालिक भी है वो
भेड़ ऊन उतारकर स्वेटर
तैयार करवाने के लिए जरूरी है
बकरी मिमियाती अच्छा
है
और मुर्गों को पालने
का
दर्शन यह है कि
उनकी गर्दन बिना विरोध
के मरोड़ी जा सकती है -
कभी भी, कहीं भी
सवाल यह है कि
तबेले वाला गाय - भैंस
को पूरी तरह इस पशुशाला से
हटा क्यों नहीं देता;
क्योंकि इनका तो कोई
ऐसा उपयोग नहीं
दूध तो आजकल सिंथेटिक
भी
मिल जाता है
तो पशुशाला का मालिक
क्या बेवकूफ है?
जो बेवजह ही इन्हें
पालता है?
उत्तर है - नहीं
दूध को असली सिद्ध
करने के लिए
यह उसे आवश्यक लगता
है।
आखिर उसे आदर्श
पशुशाला का
मालिक जो कहलाना है।
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स्पष्टवादी हैं आप....उत्कृष्ट सृजन.. mam🙏🌹
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