जितेंद्र राय 'जीत'(उत्तराखंड)
मरियल- सा हो गया था वह, कंकाल मात्र। पिछले माह उसके आस पास बहुत चहल पहल थी, बहुत लाड़ प्यार से लाया गया था उसे यहाँ। बहुत से लोगों की आँखों का तारा- सा हो गया था वह। फूले नहीं समा रहा था वह भी।फिर अचानक न जाने क्या हुआ, उसके आसपास जो चहल पहल थी, वह उस दिन के बाद फिर न दिखी उसे। जिस स्नेह की वर्षा उस पर की जा रही थी, वह बादल फिर बने ही नहीं ।
उस दिन के
ठीक एक माह और 12 दिन बाद अचानक फिर से वही चहल-पहल उसे महसूस हुई अपने आसपास। मरणासन्न था वह, तब भी
धुँधली आँखों से कुछ कुछ देख पा रहा था। बहु-त से लोग थे,
जिस हर्ष और उल्लास के साथ उसे यहाँ लाया गया था, आज कुछ और लाए जा रहे थे। हँसी, ठहाकों से गुंजित हो उठी थी मरुधरा। आँखें बंद होने लगीं, तब भी कुछ कुदालों की आवाजें, मिट्टी हटाने की खर- खर और तालियों की गड़गड़ाहट वह सुन पा रहा था।
फिर उसे रौंदते हुए कई लोग जाने लगे, वह मृत्यु के आगोश में समा गया।
5 जून को रोपी गई उस नन्ही जान की
जान कब निकल गई, उसे रोपने वाले को भी नहीं पता। नया पौधा हर्षित
है अभी, किन्तु कल....
-0-्चित्रः गूगल से साभार
वन महोत्सव बस कहने भर को है । पौधे रोपते हुए फ़ोटो खिंचाई और भूल गए ।
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती सुंदर कथा ।