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रविवार, 3 फ़रवरी 2019
101
डॉ.कविता भट्ट
1
कोई भी अपना नहीं
,
ना ही जाने पीर।
ओ मन अब तू बावरे
,
काहे धरे न धीर।।
2
ऐसे तुम रूठे पिया
,
ज्यों मावस में चाँद।
आ जाओ इक बार तो
,
घोर रात को फाँद।।
3
कंटक- पथ पर चल रही
,
तेरी यादें साथ।
कुछ भी जग कहता रहे
,
तू न छोड़ना हाथ।।
3 टिप्पणियां:
Jyotsana pradeep
6 फ़रवरी 2019 को 10:52 am बजे
कटु सत्य को सुन्दरता से दर्शाया है आपने कविता जी... हार्दिक बधाई !
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नीलाम्बरा.com
7 फ़रवरी 2019 को 9:50 pm बजे
हार्दिक आभार
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बाबूराम प्रधान
13 मार्च 2019 को 3:37 pm बजे
बHउत सुंदर
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कटु सत्य को सुन्दरता से दर्शाया है आपने कविता जी... हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबHउत सुंदर
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