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रविवार, 3 फ़रवरी 2019

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डॉ.कविता भट्ट 
1
कोई भी अपना नहीं,ना ही जाने पीर।
ओ मन अब तू बावरे,काहे धरे न धीर।।
2
ऐसे तुम रूठे पिया, ज्यों मावस में चाँद।
आ जाओ इक बार तो, घोर रात को फाँद।।
3
कंटक- पथ पर चल रही, तेरी यादें साथ।
कुछ भी जग कहता रहे, तू न छोड़ना हाथ।।

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