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बुधवार, 9 जनवरी 2019

100-जीवन


डॉ.कविता भट्ट

जीवन मेरा प्रिय मीत
न जाने क्यों भयभीत

निःशब्द और निरुत्तर
आज मृत्युशय्या पर
तुम नयन पट खोलो
मुख से कुछ तो बोलो

क्यों तुम्हें है मृत्यु-भय
तुम करते थे अभिनय

मरते ही रहे तुम निश्छल
मरने से पहले प्रतिपल

उदरक्षुधा थी बलवान
कुत्सित कहलाए महान

उनके तुम पर आदेश चले
हृदय में केवल आवेश पले



1 टिप्पणी:

  1. अधूरी सी कविता विस्तार मांगती है
    आलस्य भावों पर भारी हो जाए
    कवि कल्पना फिर सारी खो जाए

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