शनिवार, 27 अप्रैल 2019

पता तो चले


पता तो चले
जयवर्धन काण्डपाल 'जय'
अधिवक्ता, उच्चन्यायालय उत्तराखंड 
नैनीताल, उत्तराखंड 


मुंह में जुबां है पता तो चले
तेरा क्या बयां है पता तो चले I

हकों की लड़ाई में तेरी मैं पूछूं
ना है के हां है पता तो चले I

जमीं है हकीकत की पैरों तले
या ख़याली आसमां है पता तो चले I

सच झूठ में जब छिड़ी जंग है
खड़ा तू कहां है पता तो चले I

कहीं आग कोई सुलग भी रही है
के केवल धुआं है पता तो चले I

सुहावना मंजर आया

मैंने फेंका फूल मगर ये लौट के कैसे पत्थर आया 
गुनाह नहीं कोई था लेकिन इल्जाम मेरे क्यों सर आया I
पीड़ा में लिपटा तन था और मन आंसू से भीगा सा  
बहुत दिनों के बाद अचानक जब मैं अपने घर आया I
मेरी झोली में कुछ सपने और पड़ी थी कुछ यादें
रोते बच्चे के हाथों में मैं कुछ सपने धर आया I
मैंने आँखें मूंदी छुपकर और ध्यान भी भटकाया 
लेकिन जाने किन बातों से गला मेरा भी भर आया I
मैंने मन में बोया जबसे उम्मीदों का एक बगीचा 
तब से आँखों के आगे से सदा सुहावना मंजर आया I


जयवर्धन काण्डपाल 'जय'

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