थोड़ी सी पी, ज़माने को शिकायत हो गई
ज्योति नामदेव
नजरें
करम कुछ ऐसी इनायत हो गई
थोड़ी
सी पी, ज़माने को शिकायत हो गई
रहा
ना कुछ होश, अपने से ही बगावत हो गई
थोड़ी
सी पी, ज़माने को शिकायत हो गई
घने
जुल्फों के साये में चाहा था अपना आशियाना
ओ ज़ालिम
!तुझे उससे ही शिकायत हो गई
कुछ तो
करम कर, मेरे रह गुजर
दिल ही
नहीं, सारी उम्र तेरी मिलकियत हो गई
खिले
फूल से है, लब तेरे कातिल
छपती
मुहर सी दिल पर तेरी मुस्कुराहट हो गई
हाँ
मैं महकी हूँ, चहकी हूँ तेरे प्यार में
थोड़ी
सी पी, ज़माने को शिकायत हो गई
सुंदर रचना ज्योति नामदेव जी की अंदर की एक छटपटाहट है किसी शोषण के प्रति और फिर प्यार के नशे में भी सराबोर होती हुई डुबकी लगाती रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
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