डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
अभी भी प्रतीक्षा है
उस क्षण की-
जब तुम कहते
कि प्रेयसी हो तुम-
तुम्हारी पलक झपकते ही
साक्षात् और जीवंत
हो उठती हैं
वेदों की ऋचाएँ
हाँ तुम्हारी मंद स्मित
रामायण- सी
पवित्र कर देती है
मेरी प्रत्येक कामना को।
तुम्हारी सघन केशराशि
एकमात्र प्रतीक है
सूत्रकाल के गुँथे हुए
अनगिनत रहस्यों की।
संहिताएँ ही तो हैं
तुम्हारे कंठ पर लिपटी हुई
चमेली के सुगंधित पुष्पहार में
जो मुझे मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
तुम्हारी श्वासों के स्वर ताल पर
नृत्य करती हुई प्रतीत होती हैं
असंख्य अप्सराएँ
स्निग्धा !
तुम्हारी वाणी से
निःसृत शब्दावली
ऋषिकाओं के श्रीमुख से उद्घाटित
अकाट्य सत्य है।
तुम मन्दराचल - समुद्र मंथन से
प्राप्त सुधा का कलश हो।
मैं याचक बनकर
तुमसे कुछ घूँट माँगता हूँ।
भय है तो केवल यही-
कि कभी तुम्हें आघात न दे दूं
तुम्हारा एक अश्रु भी
सृष्टि में प्रलय का सूचक है।
क्योंकि प्रेयसी हो तुम!
-0-डॉ . कविता भट्ट, श्रीनगर, उत्तराखण्ड
वेद ऋचा की तरह उत्कृष्ट कविता। भाव और भाषा दोनों दृष्टि से। हार्दिक बधाई शैलपुत्री!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अद्भुत है यह कविता, बहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंनि:शब्द!!!
जवाब देंहटाएंशब्दों के चुनींदा मोतियों को पिरो जो भावों की माला आपने बनाई अद्भुत, बहुत बधाई सुंदर सृजन पर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अद्भुत सृजन है हार्दिक बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता लिखी है दीदी
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंअद्भुत, अनुपम, अतुलित, अत्यंत भावपूर्ण।
पावन वेद ऋचा- सा यह सृजन।
पढ़कर मंत्रमुग्ध हूँ।
हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया दीदी 💐🌷
सादर