डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
बरसाते
रहो /मधुमास तुम आते रहो-
रचनाकार :डॉ॰
कविता भट्ट: शैलपुत्रीय:
अनुवादक:राम प्रताप
सिंह
अब्बे सरधा पीती मम,किच्च नेहु बरसत्तु
जेत्थमिव जीवनत्तथा मधुमाह आवत्तु
मनस्सरणी आकुलता,विदूरे समुद्दा
नयनपच्छेन मग्गकांकर अपनयत्तु
मधुमाह आवत्तु
जगते सत्पीती नाम,कोपी अस्स न करत्तु
आसञ्दधन कप्पनेन सह सुरञ् मेलयत्तु।
चत्तारि दिवसेन सत्थ,पिरित्तिपथे चलन्तु
मधुमाह आवन्तु
ओधुक्किता उपवेत्थाकतम तोम परियोधनप्परि
पराच्छादन ।
कालञ् कालञ् भोत्तु हसती अपनयत्तु अब्ब मदञ् ।
मधुमाह आवत्तु
रचनाकार :डॉ॰
कविता भट्ट: शैलपुत्रीय:
अनुवादक:राम प्रताप सिंह
नग्गफनीयम वरधियम
परमहम वरधितुम नासक्कम
परिसमस्स कारमासीच्च
पुप्फवरुधम।
किञ्करन्नानि परम?
मम पुप्फपीती इतासीच्च यद
हिरिद्दीभूमीसिच्चने
अहमायू अतीता ।
मितानी पुप्फानी रदनञ्किता
ये अत्तमीसम कथयनुद्दानपालक इति कथयन्ती ।
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