सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

432-न जाने किनसे रुष्ट हो

 

डॉ. कविता भट्ट शैलपुत्री

 


न जाने किनसे रुष्ट हो -

रोकर अपनी बात समझाना चाहती हो,

लेकिन किन्हें?

सामने तो पत्थर हैं

और पता ही होगा-

पत्थरों में

रक्त, न धमनियाँ, न शिराएँ

न हृदय, न मन, न ही आत्मा

इसीलिए तुम अब

अँधेरों में खो जाओ कविते!

संभवतः नियति यही है।

 

-0-डॉ. कविता भट्ट शैलपुत्री

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