डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
न जाने किनसे रुष्ट हो -
रोकर अपनी बात समझाना चाहती हो,
लेकिन किन्हें?
सामने तो पत्थर हैं
और पता ही होगा-
पत्थरों में
न रक्त, न धमनियाँ, न शिराएँ
न हृदय, न मन,
न ही आत्मा
इसीलिए तुम अब
अँधेरों में खो जाओ कविते!
संभवतः नियति यही है।
-0-डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
बहुत मार्मिक।
जवाब देंहटाएंहृदय की गहन व्यथा का भावानुवाद है यह कविता। गागर में सागर
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