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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

431-बरसाते रहो -मैने उम्र गुजार दी

  डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'


बरसाते रहो /मधुमास तुम आते रहो- मधुमाह आवत्तु (पाली अनुवाद)

रचनाकार :डॉ॰ कविता भट्ट: शैलपुत्रीय:

अनुवादक:राम प्रताप सिंह

 

अब्बे सरधा पीती मम,किच्च नेहु बरसत्तु 

जेत्थमिव जीवनत्तथा मधुमाह आवत्तु 

मनस्सरणी आकुलता,विदूरे समुद्दा

नयनपच्छेन मग्गकांकर अपनयत्तु

मधुमाह आवत्तु

जगते सत्पीती नाम,कोपी अस्स न करत्तु

आसञ्दधन कप्पनेन सह सुरञ् मेलयत्तु।

 मधुमाह आवन्तु।

 गेहेदं तव नात्थी मम,बिरथा वाद-विवाद 

चत्तारि दिवसेन सत्थ,पिरित्तिपथे चलन्तु 

मधुमाह आवन्तु

 

ओधुक्किता उपवेत्थाकतम तोम परियोधनप्परि पराच्छादन ।

कालञ् कालञ् भोत्तु हसती अपनयत्तु अब्ब मदञ् ।

मधुमाह आवत्तु

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  मैने उम्र गुजार दी /  पाली अनुवाद:अहमायू अतीता 

रचनाकार :डॉ॰ कविता भट्ट: शैलपुत्रीय:

अनुवादक:राम प्रताप सिंह


 अतिस्सरलमासीच्च 

नग्गफनीयम वरधियम 

परमहम वरधितुम नासक्कम 

परिसमस्स कारमासीच्च 

पुप्फवरुधम। 

किञ्करन्नानि परम?

मम पुप्फपीती इतासीच्च यद 

हिरिद्दीभूमीसिच्चने 

अहमायू अतीता ।

मितानी पुप्फानी रदनञ्किता

ये अत्तमीसम कथयनुद्दानपालक इति कथयन्ती

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हिन्दी अनुवाद सहित निम्नलिखित लिंक पर पढ़ सकते हैं-

§  बरसाते रहो / कविता भट्ट

 

 

 

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