बुधवार, 9 सितंबर 2020

166- तुम नहीं आए

मंजूषा मन

नैनों ने भरना चाहा था तुम्हें
अपने भीतर
और छुपा लेना था पलकों में,
हाथों ने चाहा था छू लेना
और महक जाना
ज्यों महक जातीं हैं उँगलियाँ
चंदन को छू,
कान चाहते थे
दो बोल प्रेम के
जिन्हें सुन जन्म जन्मांतर तक
कानों में घुली रहे मिश्री,
मस्तक को चाहिए थी
तुम्हारे चरणों की एक चुटकी रज
जिसके छूते ही
मन मे भर जाए चिर शांति,
होठों ने चाहा था कह देना
मन की हर पीड़ा
कि फिर न रहे कोई दर्द,
सिर झुका रहा देर तक
इस आस में कि रख दोगे तुम हाथ
और दोगे सांत्वना
दोगे साहस जीवन जीने का,
सब मिल करते रहे प्रतीक्षा
पर तुम नहीं आए
तुम नहीं आए।
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30 टिप्‍पणियां:

  1. सर्वप्रथम डॉ कविता जी को नीलाम्बरा पत्रिका के प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं | मंजूषा जी की बहुत दिल छू लेने वाली कविता है | प्रेम के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति है | हार्दिक बधाई स्वीकारें |

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    1. मेरी कविता पढ़ने और उसे अपना प्रेम और स्नेह देने के लिए हार्दिक आभार सविता जी

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  2. आज मेरे जन्मदिन पर अपने मेरी कबिता नीलम्बरा में प्रकाशित करके मुझे उपहार दिया है.. हार्दिक आभार कविता जी

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  3. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. मंजूषा जी आपकी कविता हर प्रतीक्षारत मन की कविता है। बहुत-बहुत बधाई आप को ।

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    1. कविता को सराहने के लिए आआपक बहुत बहुत आभार सुरँगमा जी

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  5. बहुत सुन्दर कविता| जन्मदिन की हार्दिक बधाईयाँ|

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 10 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी आदरणीय यशोदा जी... साझा करने के लिए हार्दिक आभार

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  7. भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति!
    बहुत बहुत बधाई हो आपको आदरणीया!
    सादर

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  8. नीलाम्बर पत्रिका के लिये हार्दिक बधाई प्रिय कविता । मंजूषा मन जी की प्रेम कविता । हमेशा सी सुन्दर ।बधाई ।

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  9. वाह!खूबसूरत भावाभिव्यक्ति । जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐💐💐💐💐

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    1. आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार शुभा जी

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  10. बहुत सुंदर कोमल भावों का सुंदर समर्पण और साथ ही व्यथा।
    सुंदर सृजन।

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