तुम्हें जाने की हठ है; मैं निःशब्द,
मेरी श्वासों में तेरी वही सुगंध शेष है।
तुमने पलों में भ्रम तोड़ डाले सब,
मेरा अब भी वचन- अनुबंध विशेष है।
तूने कंकड़ बताया जिन्हें राह का,
मेरे लिए अक्षत बना- तेरा वो विद्वेष है।
अपमान सहना और कुछ न कहना,
केवल यही निश्छल प्रेम का संदेश है।
तुम प्रथम ही रहना, मैं अंतिम सही,
सम्मोहन का यों तो सुन्दर ये उपदेश है।
'कविता' विलग हो नहीं जी सकेगी,
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 23 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअदभुत सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंकविता कभी भी भावनाओं से कैसे विलग? दुख को जी कर ही कविता, अलंकृत होती है। बहुत भावप्रवण रचना, महोदया👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता है कविता जी अपने विचारों पर अडिग , अपने संकल्प की पोषक , अपने समर्पण की पवित्रता के भावों से ओतप्रोत शुभ और पवित्र सन्देश देती हुई सुंदर रचना बधाई
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