डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री
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दबी चिंगारी है; फिर भी उबाल आता है।
कैद मैना को आसमाँ का ख़्याल आता है।
सिलसिला ऊँची उड़ानों का यूँ तो उसकी;
जाने क्यों फिर घरौंदे का सवाल आता है।
नोंचे 'पर' उसके अँधेरे ने बेरहमी से बड़ी;
देख सूरज फिर उड़ने का मलाल आता है।
दोनों आँखों में वो तो दो 'ब्रह्माण्ड' रखती है;
उसकी राहों में मगर जग-जंजाल आता है।
उसे आवाज दे रही- अब नभ की नीलिमा;
जाने 'कविता' अब क्या चक्रचाल आता है।
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2
सजना! कोरोना भई जिंदगानी,
लॉकडाउन हो गयी प्रेम-कहानी।
रीत-दस्तूर का मास्क मुखड़े लगा,
तड़पूँ ऐसे- ज्यों मछरी बिन पानी।
सेनेटाइज करके दिल की गलियाँ,
बैठी हूँ कब से ओढ़ चूनर धानी।
कितना भी धोऊँ हाथों को अपने,
तू न छू सकेगा- गम है ये जवानी।
क्वारेन्टीन हो गए सपने सुहाने,
वैक्सीन सी हुई कसम निभानी।
बेरोजगार हो गयी प्रीत हमारी,
लहू बन बह गया आँखों से पानी
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 04 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंक्या कहने बहुत सुंदर
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