कविताएँ
डॉ.विजय प्रकाश
1
केवल संघर्ष ही नही जिंदगी में
बातें हर दौर की करता हूँ मैं
भूखे-प्यासे बचपन के
दो कौर की करता हूँ मैं।
सूखती नदियों, कटते
जंगलों
की पीड़ा पर गौर करता हूँ मैं
बदलेगी मानसिकता, सँभलेगा मानव
बरसेगी खुशहाली, झूमेगा
जीवन
उम्मीद उस दौर की करता हूँ मैं।
2
मस्त मलंग, जोश ही जोश,
उमंग ही उमंग।
अनंत को पाने की लालसा,
जिज्ञासा भरा मन।
भेदभाव, ऊंच-नीच,
तेरे-मेरे से से परे।
मधुबन में फूल सा,
खिलता रहे
बचपन।।
सुन्दर और प्रासंगिक रचनाओं हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैडम। आपकी प्रेरणा का ही फल है ये क्षणिकाएं।
हटाएंवाह-वाह हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह वाह अति उत्तम
जवाब देंहटाएंवाह बड़े भाई। मालुम न था आप इतने अच्छे कवि भी हैं । बहुत सुन्दर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंसार्थक रचनाकर्म के लिए बधाई बन्धुवर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंकेवल संघर्ष ही नही जिंदगी में
जवाब देंहटाएंबातें हर दौर की करता हूँ मैं
भूखे-प्यासे बचपन के
दो कौर की करता हूँ मैं...
वाह ! अत्यंत प्रभावशाली एवं सार्थक
सकारात्मक सुंदर सोच।
जवाब देंहटाएंवाह .. बहुत ही सुंदर रचनाएँ
जवाब देंहटाएंसहज और बेहतरीन
सुन्दर सृजन , बधाई !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत अभिनंदन.. डॉ. विजय जी
बहुत सुंदर कविताएँ ।बधाई
जवाब देंहटाएंबरसेगी खुशहाली, झूमेगा जीवन
जवाब देंहटाएंउम्मीद उस दौर की करता हूँ मैं।
Bahut khubsurat bhav or positive thought ki rachna padhkar bahut achcha laga meri bahut bahut badhai...
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंअच्छी कविताएँ विजय जी
जवाब देंहटाएंबधाई
प्रासंगिक रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंपहले प्रयास पर उत्साह वरदान हेतु धन्यवाद। विशेषकर डॉ कविता भट्ट mam का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचनाएँ हैं...हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन के लिए बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएं