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शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

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कविताएँ

डॉ.विजय प्रकाश
1
केवल संघर्ष ही नही जिंदगी में
बातें हर दौर की करता हूँ मैं
भूखे-प्यासे बचपन के
 दो कौर की करता हूँ मैं।
सूखती नदियों, कटते जंगलों
की पीड़ा पर गौर करता हूँ मैं
बदलेगी मानसिकता, सँभलेगा मानव
बरसेगी खुशहाली, झूमेगा जीवन
उम्मीद उस दौर की करता हूँ मैं।
2
मस्त मलंग, जोश ही जोश,
उमंग ही उमंग।
अनंत को पाने की लालसा,
जिज्ञासा भरा मन।
भेदभाव, ऊंच-नीच,
तेरे-मेरे से से परे।
मधुबन में फूल सा,
 खिलता रहे बचपन।।
-0- हे... गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखण्ड

ई-मेल - vijaybhatt66@gmail.com



21 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर और प्रासंगिक रचनाओं हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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    1. धन्यवाद मैडम। आपकी प्रेरणा का ही फल है ये क्षणिकाएं।

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  2. वाह बड़े भाई। मालुम न था आप इतने अच्छे कवि भी हैं । बहुत सुन्दर पंक्तियाँ।

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  3. सार्थक रचनाकर्म के लिए बधाई बन्धुवर

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    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. केवल संघर्ष ही नही जिंदगी में
    बातें हर दौर की करता हूँ मैं
    भूखे-प्यासे बचपन के
    दो कौर की करता हूँ मैं...

    वाह ! अत्यंत प्रभावशाली एवं सार्थक

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  5. वाह .. बहुत ही सुंदर रचनाएँ
    सहज और बेहतरीन

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  6. सुन्दर रचनाएँ
    बहुत-बहुत अभिनंदन.. डॉ. विजय जी

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  7. बरसेगी खुशहाली, झूमेगा जीवन
    उम्मीद उस दौर की करता हूँ मैं।
    Bahut khubsurat bhav or positive thought ki rachna padhkar bahut achcha laga meri bahut bahut badhai...

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    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. पहले प्रयास पर उत्साह वरदान हेतु धन्यवाद। विशेषकर डॉ कविता भट्ट mam का धन्यवाद।

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  9. बहुत सार्थक रचनाएँ हैं...हार्दिक बधाई |

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  10. सुंदर सृजन के लिए बहुत बधाई।

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