1-डॉ0 कविता भट्ट
रात का रोना तो बहुत हो चुका ,
नई भोर की नई रीत लिखें अब।
नहीं ला सकता है समय बुढ़ापा ,
युगल पृष्ठों पर हम गीत लिखें अब ।
नहीं हों आँसू हों नहीं सिसकियाँ,
प्रेम-शृंगार और प्रीत लिखें अब।
दु:ख- संघर्षों से हार न माने ,
वही भावाक्षर मन मीत लिखें अब।
समय जिसे कभी बुझा
नहीं पाए
हम वह जिजीविषा पुनीत लिखें अब।
कभी हार न जाना ठोकर खाकर,
काल -गति से कभी बाधित न होंगे
आज कुछ इसके विपरीत लिखें अब।
यही समय हमारा नाम लिखेगा ,
सोपानों पर नई जीत लिखें अब।
-0-[हे0न0ब0गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर (गढ़वाल),उत्तराखण्ड]
[ चित्र-रश्मि शर्मा , राँची के सौजन्य से]
नववर्ष की हार्दिक बधाई प्रिय कविता जी । सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभार, आपको भी बधाई
हटाएंआभार, आपको भी बधाई।
जवाब देंहटाएंआभार , आपको भी बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना कविता जी ..नव वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आपको !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , प्रेरक प्रस्तुति ...हार्दिक बधाई कविता जी ..मंगलकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आशावादी रचना
जवाब देंहटाएं