डॉ.कविता भट्ट
अभिसार को आतुर ये बादल की गतियाँ
बर्फीले बिछौनों पर ये अनुपम आलिंगन
सुरीली हवाओं के उन्नत पहाड़ों को चुम्बन
ये घाटी, ये चोटी ये उन्नत हिमाला
कन्या -सी कड़ी शांति लिये पुष्पमाला
कभी गुनगुनाती, कभी गुदगुदाती
धूप प्रेयसी सी उँगलियाँ फिराती
मंगल गाते वृक्ष-लताएँ लिपटे समवेत
स्वर्ग को जाती सुन्दर सीढ़ियों- से खेत
युगल-पक्षियों की प्रणय रत कतारें
मृग-कस्तूरी सी सुगन्धित अनुपम बयारें
अपनी ही प्रतिध्वनि कुछ ऐसे लौट आए
जैसे प्रेयसी को उसका प्रियतम बुलाए
इस प्रतिध्वनि में डूब ऐसे खो जाऊँ
पद-धन-मान छोड़ बस इनमें खो जाऊँ
-0-
आपकी सभी कविताएँ बहुत अच्छी लगी, आपकी कविताओं में प्रकृति प्रेम झलकता है..।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, अजय जी
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना । वाह
जवाब देंहटाएं