शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

90-बूढ़ा दिया


   बूढ़ा दिया  
डॉ कविता भट्ट 

अमावस की
कल थी काली रात   
मैं वह दिया 
दीपमालिका का जो-  
अँधियारे से 
जूझा पूरी रात हूँ    
जगमगाता   
कोना-छत-मुँडेर    
मंदिर-घर
रौशन की गलियाँ 
कल ही हुआ  
पूजन वंदन 
अभिनंदन   
आज पड़ा हुआ  हूँ 
एक कोने में 
घर के बुजुर्ग-सा 
फेंका जाऊँगा
अब कल गंगा में 
है न आश्चर्य?
नाम दिया जाएगा 
इसको  विसर्जन 


3 टिप्‍पणियां:

  1. 'बूढ़ा दिया' दीपक पर केन्द्रित एक प्रतीक कविता है . सामान्य शब्दावली में जीवन की निस्सारता का मार्मिक चित्रण किया गया है. हार्दिक बधाई डॉ कविता भट्ट जी!

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  2. अर्थगम्भीर रचना...हार्दिक बधाई कविताजी

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  3. समाज की दशा
    बुजुर्गों का गिरता महत्व
    बुझे हुए दीयों सा
    सत्य के दर्शन कराती रचना
    बधाई

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