90-बूढ़ा दिया
बूढ़ा दिया
डॉ
कविता भट्ट
अमावस की
कल थी काली रात
मैं वह दिया
दीपमालिका का जो-
अँधियारे से
जूझा पूरी रात हूँ
जगमगाता
कोना-छत-मुँडेर
मंदिर-घर
रौशन की गलियाँ
कल ही हुआ
पूजन व वंदन
अभिनंदन
आज पड़ा हुआ हूँ
एक कोने में
घर के बुजुर्ग-सा
फेंका जाऊँगा
अब कल गंगा में
है न आश्चर्य?
नाम दिया जाएगा
इसको विसर्जन
'बूढ़ा दिया' दीपक पर केन्द्रित एक प्रतीक कविता है . सामान्य शब्दावली में जीवन की निस्सारता का मार्मिक चित्रण किया गया है. हार्दिक बधाई डॉ कविता भट्ट जी!
जवाब देंहटाएंअर्थगम्भीर रचना...हार्दिक बधाई कविताजी
जवाब देंहटाएंसमाज की दशा
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों का गिरता महत्व
बुझे हुए दीयों सा
सत्य के दर्शन कराती रचना
बधाई