विश्व पर्यावरण दिवस विशेष
प्रवीण गुगनानी
चढ़ता सूरज
उभरती आशाएँ
खुलते जंदड़े*
खिलती मुस्कान।
जब तक
तुम बाहर निकलोगी ए, जिंदगी
सूर्य का तेज जा चुका होगा
स्वागत करेगी तुम्हारा
वर्षा की कुछ बूँदे
स्वाति नक्षत्र की।
बस अपना मुँह खुला रखना
आकाश की ओर ताकते रहना
बादल आएँगे
बरस जाएँगे
तुम्हे सराबोर कर जाएँगे।
बरसते बादल
ताप की कुछ
कटुक-बिटुक स्मृतियाँ धो जाएँगे।
कुछ बीज भर रखना अपनी मुट्ठियों में
उन्हें बोते रहना
न देखना बीज किसके हैं
और
न जमीन देखना किसकी है
बस बोते -बीजते रहना।
कुछ बीज बचा लेना
कुछ वृक्ष उपजा देना
कुछ जल सहेज लेना
ताकि
फिर आएँ
ये ताप भरे दिन
जो हैं बादलों के अग्रदूत।
-0-*जंदड़े = ताले का पंजाबी पर्यायवाची
सुन्दर रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बधाई
जवाब देंहटाएंशैलपुत्री जी का सादर आभार और प्रणाम..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंएक अच्छी रचना के लिए आपको बहुत बधाई
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