डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
हथेली बिछाई तुमने,
मैंने लहराके डग भरे।
सपनों की झूम खेती,
अब करने को पग धरे।
कल्पतरु- से तुम खड़े,
अपराजिता हो उर मिली।
मंद - मंद मुस्काती हुई-
पुष्पित सुरभित हर कली।
संजीवनी- सा संग हुआ,
मिलन समय से है परे।
नयन मूँदे क्षण पड़े हैं -
अधर- अधर पर धरे।
तुम घुल गए हो मुझमें,
मृदु- पहाड़ी संगीत- से।
नदी -सी उन्मुक्त बहती
प्रवाह है तुम्हारी- प्रीत से।
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गहन भाव का सजीव चित्रण । उत्कृष्ट सृजन के लिए बधाई!!💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन,गहन भाव!
जवाब देंहटाएंउम्दा सृजन!
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह... अद्भुत... रम्य सृजन आद. कविता जी... 🌹🙏पढ़कर हृदय आनंदित हो उठा 🌹🙏😊
जवाब देंहटाएंवाह अनुपम मनभावन सृजन
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