अदिति रॉय
दिल से दिल तक जुड़ी हुई हूँ,
तुम चाहो तब तक,
सब छोड़-छाड़,
तुममें बिल्कुल सदी हुई हूँ ।
तुमसे कोई लेन- देन
होगा,
पुराना कोई तालमेल होगा,
तभी तो आँखें बंद
करके,
तुममें खुद को पिरोई हुई हूँ ।
रिश्ते का कोई नाम नहीं है,
बातों का कोई काम नहीं है,
मन से स्वीकार कर लिया है,
तुम्हें अपना मानकर सोई हुई हूँ ।
शब्द- अपशब्द बन गए अगर,
स्वार्थ राह बदल दे अगर,
लांछनों से युग भर जाए अगर,
तुम तब भी मेरे साथ रहोगे,
ये इच्छा हृदय में सँजोए
हुए हूँ ।
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सच कभी-कभी जब किसी को देख अचानक उससे बातें करने का मन करता है वह अपना लगने लगता है तो यह किसी जनम का हिसाब सा लगता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
मोह सदा दुःख ही देता है, प्रेम का बंधन सब के लिए कल्याण कारी है
जवाब देंहटाएंवाह!सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंऐसा ही हो. मोह का बंधन दृढ हो. सुन्दर.
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