रविवार, 8 नवंबर 2020

175-तू प्रेमघन

डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'


1


शुष्क पवन
मरुभूमि जीवन
तू प्रेमघन।

2

जग -जंजाल

झूठा यह मधुदेश

तुम विशेष।

3

तोड़ो बन्धन

करो तो आरोहण

जग-क्रन्दन।

4


प्रेम-प्रस्तर

अडिग रह बने

शैल -शिखर।

5

तू हिमधर

पवन झकोरों में

खड़ा निडर।

 


14 टिप्‍पणियां:

  1. मर्मस्पर्शी ! मुक्तछंद , गांभीर्य पूर्ण । रचना तथा कविता जी को साग्रह शुभेच्छा प्रेषित।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 09 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. एक से बढ़कर एक हाइकु
    बहुत सुंदर
    हार्दिक बधाइयाँ

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  4. बहुत-बहुत सुन्दर सभी हाइकु ।बधाई कविता जी।

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  5. वाह! मधुरम, सुंदरम!!!! हाइकू 👌👌👌👌

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  6. बहुत सुंदर हाइकु हैं बधाई
    पुष्पा मेहरा

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