डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
ओ समय !
तुझे कहते सभी बलवान,
मैं भी पहाड़ी नदी हूँ,
तेरा कठोर सीना चीर,
बलवती होकर गुजरूँगी,
क्रूर परतों को मिटा,
हस्ताक्षर करके ही रहूँगी l
मेरी लहरों पर लिखी,
पंक्तियाँ उदास सही आज,
मेरा होगा कल- मीलों चल,
सागर तक पहुँचकर ही रहूँगी l
बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर!
कविता मुझे गर्व है ,तुम्न्हारी इन पंक्तियों पर | तुम नवयुवकों की परिभाषा हो | अपने भारत की आशा हो | श्याम -हिन्दी चेतना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्रेरक रचना... हार्दिक बधाई आपको कविता जी !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 28 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, ऊर्जावान हृदय की अभिव्यक्ति ।बहुत-बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है।पढ़े और प्रतिक्रिया दें
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है
बहुत सुंदर भावयुक्त कविता बधाई
जवाब देंहटाएंशानदार।
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