डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
1
लिपटा वहीं
घुँघराली लटों में
मन निश्छल,
चाँद झुरमुटों में
न भावे जग-छल ।
2
ढला बादल
नदी के आगोश में
हुआ पागल
लिये बाँहों में वह
प्रेमिका -सी सोई।
3
मन वैरागी
निकट रह तेरे
राग अलापे,
सिंदूरी सपने ले
बुने प्रीत के धागे।
4
मन मगन
नाचता मीरा बन
इकतारे -सा
बज रहा जीवन
प्रीत नन्द नन्दन!
5
रवि -सी तपी
गगन पथ लम्बा
ये प्रेमपथ ,
है बहुत कठिन
तेरा अभिनन्दन!
बेहद सुन्दर एवं भावपूर्ण।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई आदरणीया।
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर।
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाएँ कविता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सारगर्भित रचना बधाई
जवाब देंहटाएंप्रकृति के साथ भावों का वर्णन..सुंदर अभिव्यक्ति..।
जवाब देंहटाएंपढकर मन पुलकित हो गया इतनी सुंदर मधुर कल्पनाओं के साथ प्रकृति की गोद में | अति सुंदर -श्याम हिन्दी चेतना
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसुंदर
सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सरस क्षणिकाएं |
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण ताँका
नदी के आगोश में ...प्रेमिका -सी सोई -बहुत ही सुंदर
सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण ताँका, बधाई कविता जी.
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत सृजन कविता जी,बहुत-बहुत बधाई आपको!
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