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रविवार, 15 नवंबर 2020

177- नदी के आगोश में

डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

1


लिपटा वहीं

घुँघराली लटों में

मन निश्छल,

चाँद झुरमुटों में

न भावे जग-छल ।

 2

ढला बादल

नदी के आगोश में

हुआ पागल

लिये बाँहों में वह

प्रेमिका -सी सोई।

3

मन वैरागी

निकट रह तेरे

राग अलापे,

सिंदूरी सपने ले

बुने प्रीत के धागे।

4

मन मगन

नाचता मीरा बन

इकतारे -सा

बज रहा जीवन

प्रीत नन्द नन्दन!

5

रवि -सी तपी

गगन पथ  लम्बा

ये प्रेमपथ ,

है बहुत कठिन 

तेरा अभिनन्दन!


13 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सुन्दर एवं भावपूर्ण।
    बहुत बहुत बधाई आदरणीया।
    दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    सादर।

    रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुन्दर रचनाएँ कविता जी।

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  4. प्रकृति के साथ भावों का वर्णन..सुंदर अभिव्यक्ति..।

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  5. पढकर मन पुलकित हो गया इतनी सुंदर मधुर कल्पनाओं के साथ प्रकृति की गोद में | अति सुंदर -श्याम हिन्दी चेतना

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  6. एक से बढ़कर एक ....
    बहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण ताँका
    नदी के आगोश में ...प्रेमिका -सी सोई -बहुत ही सुंदर

    सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें

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  7. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण ताँका, बधाई कविता जी.

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  8. बेहद ख़ूबसूरत सृजन कविता जी,बहुत-बहुत बधाई आपको!

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