'रात की
रानी' महक रही थी,
पिय आलिंगन बहक
रही थी।
सपने सजाए, मधु-गीत गाए,
निज अधर धरे नैना
उलझाए।
रख हृदय पर पिय
के शीश।
माँगा अंजुरीभर
शुभाशीष।
साँस- साँस तक
नित प्रसार,
अभिरंजित काया
अभिसार।
अहं मिटाया, किया समर्पण,
झाँका प्रिय
आँखों में दर्पण।
नित बैठे पिय
क्यों अहं धरे?
नेहडोरी टूटी औ
सपने बिखरे।
न जाने थी कुटिल
कौन घड़ी?
सिसकी रोकर वह
मौन बड़ी।
न भावे- कहाँ वे
मन-वचन गए।
क्यों तन-मन-जीवन
रुदन भए।
दिन चार जीवित, बँधो भुजपाश,
तन-मन इक कर, झूलें आकाश।
वाह!!लाजबाब दीदी जी।
जवाब देंहटाएंExcellent rendering. भ्रमर गीत ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर दीदी जी।
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