फिर से
राधा मैंदोली
लौ-सी फड़फड़ाकर
शांत हो जाने के बाद
एक हिचकी अनमनी- सी
फिर जला जाती है, जी ।
टूटकर सब तार, वीणा के
बिखर जाने के बाद
एक सरगम मधुबनी -सी
फिर जुड़ा जाती है, जी ।
क्या कहूँ ? तुमको ,जो
मुझ में ही रहे, वर्षों के बाद
छुअन तेरी, मूर्छिता का
फिर जिला जाती है, जी ।
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सुंदर बहनजी अप्रितम सृजन
जवाब देंहटाएंhttps://adigshabdonkapehara.blogspot.com/?m=1 अडिग शब्दों का पहरा में आकर अपना आशीष स्नेह दीजिएगा
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