डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
फिर मिलेंगे [पूरी कविता]
जब आप बैठते हो ट्रेन में
जाते हो दूर- किसी अपने से
ट्रेन की स्पीड के साथ
कदमताल करती धड़कनें
तेज़ होती जाती हैं-
स्टेशन के पीछे छूटते हुए
आपको लगता है
दम घुट जाएगा, साँसें रुक जाएँगी
आप दरवाज़े से बाहर झाँकते हुए
रोते हो बेतहाशा-
रुकता ही नहीं,
आँसुओं का सैलाब।
धीरे-धीरे ओझल हो जाता है-
आपका वह अपना- हाथ हिलाते हुए;
आप बर्थ पर ढेर हो जाते हो
फिर काँपते हाथों से
मोबाइल निकालकर-
कॉल लगाते हो;
उधर से आवाज आती है-
'रोओ मत, अपना ध्यान रखना
तुम्हें पता है ना, तुम्हारा रोना
दुनिया में सबसे बुरा लगता है,
आँसू पोंछो, मुस्कराओ,
जल्दी ही फिर मिलेंगे।'
फिर आप सिसकते हुए
धीरे-धीरे चुप हो जाते हो
इस उम्मीद में कि फिर मिलेंगे ही।
काश! दुनिया के स्टेशन पर खड़े होकर
जीवन की आखिरी ट्रेन में बैठे
किसी अपने को कोई अपना
ये दिलासा दे पाता-
रोओ मत, जल्दी ही फिर मिलेंगे!
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