रेखा चमोली
(श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखण्ड)
खुद ही जीना पड़ता है।
अपनी आँखों के बहते अश्कों को
खुद ही पीना पड़ता है।
हँसती आँखों के संगी तुझको
मिल जाएँगे कई सफर में,
दर्द- भरी उधड़ी चादर को
खुद ही सीना पड़ता है।
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