गुरुवार, 3 नवंबर 2022

397- जीना पड़ता है

 रेखा चमोली

(श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखण्ड)

 


खुद के अंतस् की पीड़ा संग

खुद ही जीना पड़ता है।

अपनी आँखों के बहते अश्कों को

खुद ही पीना पड़ता है।

हँसती आँखों के संगी तुझको

 मिल जाएँगे क सफर में,

दर्द- भरी उधड़ी चादर को

खुद ही सीना पड़ता है।

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