राजीव रत्न पाराशर कैलिफोर्निया
दोष दें पर्यावरण को।
प्रीति का गिरता जलस्तर
कामना के कुएँ सूखे,
शुष्क शोणित उष्ण मरु सम
आँख में हैं भाव रूखे,
मलिनता मस्तिष्क में रख
इत्र से धोएँ चरण को।
है प्रदूषण आचरण में
दोष दें पर्यावरण को॥
भरा नीयत मे धुआँ
निष्ठा नियम में धुंध है,
मैल है मन में, निकासी
द्वार सारे बंद हैं,
दाग दामन के छुपाते
ओढ़ झूठे आवरण को।
है प्रदूषण आचरण में
दोष दें पर्यावरण को॥
वृक्ष व्यवहारों के काटें
खेत रिश्तों के जलाएँ,
पराबैंगनी किरण छल की
ग्रहण शुचिता को लगाएँ,
दृष्टि दूषित, उग्रता
उन्मुख है
उर के अधिग्रहण को।
है प्रदूषण आचरण में
दोष दें पर्यावरण को॥
बहुत सुन्दर कविता, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंआपकी झलक सबसे अलग राजीव जी👌👌👌
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